'मन करि ले साहिब से प्रीत, सरन आये सो सब ही उबरे ऐसी उनकी रीत' वाणी श्री गुरु कबीरदास जी। संतमत 107 подписчиков Скачать
'दारिदु देखि सभ को हसै ऐसी दसा हमारी, असट दसा सिधि कर तलै सभ क्रिपा तुमारी' वाणी श्री गुरु रविदासजी। Скачать
शब्द के द्वारा सृष्टि की रचनाकर, साहेब तेरी साहिबी सब घट रही समाय कि रचयिता है शब्दरुप में घट-घटवासी Скачать
"प्रेम प्याला जो पिए शीश दक्षिणा दे...राजा प्रजा जोही रुचे शीश दी ले जाय" वाणी श्री गुरु कबीरदास जी। Скачать
काह भरोसा देह का बिनस जात छान मारही । सांस सांस सुमिरन करो और यतन कछु नाही ॥ -श्री गुरु कबीरदास जी। Скачать
ऊँचे पानी ना टिके, नीचे ही ठहराय। नीचा हो सो भारी पी, ऊँचा प्यासा जाय॥ -श्री गुरु कबीरदासजी की वाणी। Скачать
दुखियारी दुखियारा जग मंह, मन जप लै राम पियारा रे॥..जन रविदास राम नित भेंटहि, रहि संजम जागति पहरा रे॥ Скачать
जगमें गुरु समान नहिं दाता॥बस्तु अगोचर दई सतगुरु ने भल बताई बाटा॥परदा खोल मिलो सतगुरु से आव लोकदयारा॥ Скачать
कबीर कहै घट को जो मथै, तब पावै सबद प्रकास है जी। मिहनत बिना सब ढूंढ फिरे, यह बात से लोग निरास है जी। Скачать
नर तन पाय किया का भाई। अंदर की नहिं अगिन बुझाई। यह औसर भली भाँति बिचारे, नहिं यह जन्म वायदे हारे। Скачать
क्या माँगों कछु थिर न रहाई, देखत नैन चल्यो जग जाई। कहैं कबीर अंत की बारी, हाथ झारि ज्यों चला जुवारी। Скачать