पड़िहार राजपूतों की कुलदेवी चामुंडा माता
शुम्भ - निशुम्भ, और सेनापति चण्ड-मुण्ड जैसे असुरों का विनाश करने से माता कालिका चामुण्डा के नाम से प्रसिद्ध हुई । माता कालिका को पुराणों के अनुसार, माता दुर्गा का सातवां अवतार माना जाता है तथा माता चामुण्डा को भगवती दुर्गा का आठवां अवतार माना जाता है । इसलिए माता चामुण्डा को अष्टमात्रिका, अरण्यवासिनी तथा अम्बरोहिया भी कहा जाता है । देवी चामुण्डा के परमभक्त पड़िहार नाहड़राव गाजन के वंशज घंटियाला गांव निवासी ठाकुर खाखू जी पड़िहार, माता चामुण्डा को कुलदेवी के रूप में पूजा, अर्चना, और आराधना करने चामुण्डा गांव जाते थे, जहां चामुण्डा देवी का मंदिर था । चामुण्डा गांव जोधपुर से 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित है । जहां एक ऊंची पहाड़ी पर माता का मंदिर बना हुआ है । इस मंदिर में प्रतिष्ठापित प्रतिमा के बारे में मान्यता है कि यह प्रतिमा देवी की शक्ति से प्रकट हुई हैं । मंदिर के आगे के भाग में यज्ञकुंड बना हुआ है । अद्भुत परिक्रमा स्थल वाले इस मंदिर में माता चामुण्डा की शिलारूपी प्रतिमा अपने पांव पर खड़े होकर भक्तों को आशीर्वाद देते नजर आती है । अन्य क्षत्रिय वंशों की तरह मंडोर के पूर्व पड़िहार वंश के शासकों ने भी शक्ति की प्रतीक के रूप में माता चामुण्डा को कुलदेवी के रूप में पूजा अर्चना और आराधना की और अपनी राजधानी मंडोर में माता की प्रतिमा स्थापित की । मंडोर के पड़िहार शासक, राव चुंडा राठौड़ को मंडोर का राज्य व शासन का भार सौंपकर निश्चिंत होकर चले गए । राव चुंडा राठौड़ मंडोर का राज्य मिलने के पहले से ही माता चामुण्डा के परमभक्त थे । अपने काका, संत शासक रावल मल्लिनाथ जी के यहां रहते हुए, राव चुंडा राठौड़ अक्सर चामुण्डा गांव में स्थित माता चामुण्डा के मंदिर में दर्शनार्थ जाते रहते थे । लोक मान्यता है कि राव चुंडा को एक बार माता चामुण्डा ने सपने में दर्शन देकर बताया कि - सुबह एक बंजारा घोड़ों के काफिले के साथ इधर से होकर निकलेगा । घोड़ों की पीठ पर सोने की ईंट लदी होगीं, यह ईंटें तेरे भाग्य में है । प्रात:काल होते हैं राव चुंडा ने बंजारे को मारकर सोने के ईंटें सहित घोड़ों को हस्तगत कर लिया और अपनी सैन्य-शक्ति बढ़ाई । आगे चलकर इंदा राणा उगमसी की पोत्री का विवाह राव चुंडा राठौड़ के साथ हुआ और साथ में मंडोर का किला राव चुंडा राठौड़ को दहेज में मिल गया । जहां राव चुंडा ने अपनी ईष्टदेवी माता चामुण्डा का पड़िहारों द्वारा प्रतिष्ठापित स्थल पर मंदिर का निर्माण करवाया । राव चुंडा के पुत्र राव जोधा ने सुरक्षा की दृष्टि से मेहरानगढ़ के नाम से दुर्ग बनाकर जोधपुर नगर की स्थापना की । तब मारवाड़ की रक्षा करने वाली व अपने पिता की ईष्टदेवी व पड़िहारों की कुलदेवी को अपनी ईष्टदेवी स्वीकार करते हुए मंडोर से माता की प्रतिमा लाकर जोधपुर में प्रतिष्ठापित करवाया । राठौड़ों की कुलदेवी मूलतः नागणेचियां माता है पर राव जोधा ने माता चामुण्डा को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार कर अपने वंश व राज्य की संरक्षिका बनाकर सम्पूर्ण सुरक्षा का भार सौंपा, जिसे माता 550 वर्षों से निभा रही हैं :-
गढ़ जोधाणे ऊपरै, बैठी पंख पसार ।
अम्बा थारों आसरों, तू ही है रखवार ।।
चावन्ड थारी गोद में खेल रयो जोधाण ।
तूं ही निगह राखीजै, थारा टाबर जाणं ।।
9 अगस्त 1857 को दुर्ग में स्थित गोपालपोल के पास भाटी गोविंददास की हवेली के निकट बिजली पड़ी । जिससे बारूद के कोठार में विस्कोट हुआ, ख्यात में विस्फोट का कारण गणपतलाल के द्वारा बारूद के कोठार में बीड़ी जलाने के कारण लिखा है । विस्कोट का कारण चाहे कुछ भी रहा हो परंतु राव जोधा कालीन चामुण्डा माता का मंदिर क्षत-विक्षत हो गया परन्तु माता की मूर्ति एकदम सुरक्षित रही । इस भयंकर विस्कोट से भारी तबाही हुई, और लगभग 300 व्यक्तियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । विस्कोट से किले सहित नगर के कई निर्माण धराशयी हो गये थे । कहा जाता है कि विस्कोट से चौपासनी गांव तक पत्थर गिरे थे । इस विस्कोट में मृतकों की भारी संख्या के चलते उनके अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां तक कम पड़ गई थी । इतनी भारी मात्रा में मौतें होने के कारण तत्त्कालीन महाराजा तख्तसिंह जी ने ज्योतिषियों की सलाह पर एक शांति हवन करवाया और तत्पश्चात् ही माता के मंदिर का महाराजा तख्तसिंह जी ने पुननिर्माण करवाया । प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की तेरस को जोधपुर किले में स्थित इस माता चामुण्डा के इस मंदिर का जीर्णोद्धार दिवस मनाया जाता है ।
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