भक्तों प्रणाम, हमेशा की तरह आज हम आपको अपने कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से एक ऐसे मंदिर की यात्रा करवाने जा रहे हैं. जो अध्यात्मिक ही नहीं बल्कि रहस्यात्मक भी है. देश का एक मात्र ऐसा मंदिर जहाँ भगवान् शिव माता पार्वती के साथ वैवाहिक वेशभूषा में नंदी जी पर प्रतिमा स्वरुप विराजमान हैं. एक ऐसा मंदिर जो कभी तंत्र मंत्र, साधना एवं आयुर्वेद के विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता था. जहाँ भगवान् शिव के आदेश पर नर्मदा नदी को अपना प्रवाह मार्ग बदलना पड़ा. जहाँ के दैवीय चमत्कार को देख भयभीत होकर औरंगजेब को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा. एक ऐसा मंदिर जहाँ सूरज ढलने के एक निश्चित अंतराल के बाद रुकना सख्त मना है. तो आइये आपको लेकर चलते हैं जबलपुर स्थित “चौसठ योगिनी मंदिर की यात्रा पर.
मंदिर के बारे में:
मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित अपनी दूधिया संगमरमर चट्टानों के लिए विश्व प्रसिद्ध भेडाघाट में नर्मदा नदी के समीप करीब ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर देश के कुछ सुरक्षित बचे चौसठ योगनी मंदिरों में से एक है. जो की देवी दुर्गा की 64 अनुषंगिकों (योगनियों ) एवं भगवान् गौरीशंकर को समर्पित मंदिर है. इसे गोलकी मंदिर या गोलकी मठ के नाम से भी जाना जाता है. तमाम रहस्यों की कथाओं को अपने में समेटे यह मंदिर यहाँ आने वाले दर्शनार्थियों को एक तरफ आध्यात्मिक तो दूसरी ओर यहाँ की विशेषताओं के कारण एक भय का अनुभव भी देता हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां एक सुरंग भी है जो इस मंदिर को गोंड रानी दुर्गावती के महल से जोड़ती है. एक विशाल परिसर में फैले इस मंदिर के हर एक कोने से भव्यता झलकती है.
कहते हैं. यह मंदिर किसी समय तंत्र साधना का एक विशेष स्थान हुआ करता था. आज भी जब तंत्र साधना की बात होती है तो गोलकी मठ को विशेष तौर पर याद किया जाता है. जहाँ काल गणना और पंचांग निर्माण, ज्योतिष, गणित, संस्कृत साहित्य और तंत्र विज्ञान का अध्ययन करने के लिए देश और विदेश से छात्र आया करते थे। तथा 10वीं शताब्दी में यह मंदिर आयुर्वेद शिक्षा का विशेष स्थान हुआ करता था। कालांतर मुगल आक्रान्ताओं के आक्रमण के बाद यह केंद्र बंद कर दिया गया.
मंदिर का इतिहास:
चौसठ योगिनी मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी के दौरान कल्चुरी शासक युवराजदेव प्रथम के द्वारा कराया गया। उन्होंने माँ दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना के साथ 64 योगिनियों का आशीर्वाद लेने के उद्देश्य से इस मंदिर का निर्माण कराया था। कहते हैं. युवराजदेव के बाद 12वीं शताब्दी के दौरान शैव परंपरा में पारंगत गुजरात की रानी गोसलदेवी ने चौसठ योगिनी मंदिर में गौरी-शंकर मंदिर का निर्माण कराया। इस तरह से कालांतर माँ दुर्गा की प्रतिमा के स्थान पर भगवान् भोलेनाथ एवं माता पार्वती की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया. मान्यता यह भी है कि यह स्थल महर्षि भृगु की जन्मस्थली है, जहां उनके प्रताप से प्रभावित होकर तत्कालीन कल्चुरी साम्राज्य के शासकों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया।
मंदिर परिसर:
भक्तों, यह मंदिर पहाड़ी के शिखर पर स्थित होने के कारण यहां से काफ़ी बड़े भू-भाग व कल कल करती नर्मदा नदी को निहारा जा सकता. कई सीढ़ियों को चढ़कर मंदिर में प्रवेश करने के लिए केवल एक छोटा सा द्वार बनाया गया है। मंदिर के चारों तरफ़ करीब दस फुट ऊंची गोलाई में पत्थरों की चारदीवारी बनाई गई है. इन दीवारों के अंदर के भाग पर चौंसठ योगिनियों की विभिन्न मुद्राओं में पत्थर को तराश कर मूर्तियां स्थापित की गई हैं. इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर त्रिभुजाकार 81 कोणों पर आधारित है, जिसके प्रत्येक कोण पर योगिनी की स्थापना की गई थी. योगनियों की हर प्रतिमा एक विशिष्ट भाव भंगिमा को दर्शाती है. एवं इस मंदिर की प्राचीनता को भी दर्शाती हैं. यद्यपि मंदिर में योगिनियों की इस प्रतिमाओं को मुग़ल आक्रान्ता औरंगज़ेब द्वारा खंडित कर दिया गया है. यहाँ योगनियों के अतिरक्त कुछ अन्य देवी देवताओं की भी प्रतिमाएं है इस प्रकार से यहाँ कुल 85 प्रतिमाएं हैं गर्भग्रह में स्थित प्रतिमाएं मिलाकर इस पूरे मंदिर में कुल 95 प्रतिमाएं हैं. इस प्रतिमाओं का दर्शन करते हुए आपको यहाँ एक विशाल खुला प्रांगण दिखता है. जिसके बीचों-बीच करीब डेढ़-दो फुट ऊंचा और करीब 80-100 फुट लंबा एक चबूतरा बनाया गया है। इस मंदिर परिसर में आपको एक विशिष्ट शान्ति का अनुभव होता है.
मंदिर का गर्भग्रह:
मंदिर परिसर की गोलाकार संरचना के केंद्र में दक्षिण दिशा की ओर बने अद्भुत नक्काशीदार मुख्य मंदिर के गर्भगृह में गौरीशंकर की प्रतिमा स्थापित है। नंदी पर विराजमान भगवान शिव और माता पार्वती की विवाह प्रतिमा पूरे देश में एकमात्र ऐसी प्रतिमा मानी जाती है। श्रद्धालु महादेव का दर्शन पूजन कर उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं. यहाँ महादेव एवं माता पार्वती के अतिरिक्त अष्टभुजी गणेश जी, श्री लक्ष्मीनारायण जी, वामन देव जी, नाग देवता, नाग माता, सूर्य देव, तारा देवी, दत्तात्रेय भगवान् एवं चतुर्भुज भगवान् हैं. ये सभी प्रतिमाएं अत्यंत प्राचीन एवं अद्भुद हैं. महादेव का यह मंदिर चारों ओर से देवी की प्रतिमाओं से घिरा हुआ है. इसके साथ ही गर्भग्रह के सामने नंदी जी की प्रतिमा स्थापित है. इसके आगे एक विशाल बरामदा है. बरामदे के सामने बने छोटे से चबूतरे पर शिवलिंग की स्थापना की गई है. जहाँ श्रद्धालुओं द्वारा विभिन्न तरह के अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है।
श्रेय:
लेखक - याचना अवस्थी
Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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