Dosto, aaj ke hamare is episode me hamne aapko chhattisgarh ke prasiddh, pavitra dharmik nagir rajim ke kuleshwar nath mahadev ji ka darshan karaya hai. yah mandir mahanadi, sondhur aur pairi nadi ke triveni sangam ke madhya sthiti hai. is mandir ke sath ramayan kalin katha ke sath kalchuri shasan kal ka itihas juda hua hai. rajim ko chhattisgarh ka prayag bhi kaha jata hai. pratyek varsh yahan vishal mela lagta hai jise vartman me maghi punni mela ke nam se jana jata hai parntu purva me is mela ka naam rajim kumbh tha. is mele me sadhu santo ka jamawda lagta hai.
राजिम, एक ऐसा पवित्र धार्मिक नगरी है जो कि छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि पूरे भारत मे प्रसिद्ध है। इस स्थान के साथ रामायण कालीन पौराणिक कथा एवं कल्चुरी वंश का इतिहास के साथ साथ कई किवदंती जनश्रुति कथाएं जुड़ी हुई है। वर्तमान समय मे यहाँ माघी पुन्नी मेला का आयोजन होता है जिसे पूर्व में राजिम कुंभ मेला कहा जाता था। इस मेले में पूरे देश से साधु संतों का जमावड़ा लगता है। महानदी, सोंढुर और पैरी नही के त्रिवेणी संगम में राजिम का यह पवित्र नगरी विद्यमान है। इन सभी कारणों से राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। राजिम में विद्यमान भगवान राजीव लोचन जी का मंदिर, भगवान कुलेश्वर नाथ महादेव जी का देवालय और लोमस ऋषि जी का आश्रम यहां के मुख्य आकर्षण है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी में राजिम स्थित है। यहाँ आप सड़क मार्ग, वायु मार्ग और रेल मार्ग से आ सकते है।
आज के इस एपिसोड में हम आपको कुलेश्वर महादेव जी से जुड़ी सारी कथाओं के साथ सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करते हुए अद्भुत शिवलिंग का दर्शन कराएंगे।
रामायण कालीन पौराणिक कथा की बात करें तो जब भगवान राम को वनवास हुआ था तब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी राजिम के त्रिवेणी संगम में स्थित लोमस ऋषि जी के आश्रम में रुके हुए थे। तब माता सीता ने त्रिवेणी संगम में रेत का शिवलिंग बनाकर भगवान शंकर की पूजा अर्चना की थी जो आज यहाँ पंचमुखी कुलेशर महादेव के नाम से पूजा जाता है।
मंदिर निर्माण की बात करें तो इसका इतिहास कलचुरी शासनकाल से है पुरात्वविदों की माने तो मंदिर का निर्माण 8 वी - 9 वी शताब्दी के मध्य में किया गया था। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस मंदिर का निर्माण तत्कालीन राजाओं ने जिन भी कारीगरों से कराया था वो बहुत ही दूरदृष्टा रखकर मंदिर का निर्माण किये थे। इसी कारण से यह मंदिर 12सौ वर्षों से भी अधिक समय तक भीषण बाढ़ो का सामने करते हुए आज तक यथावत टिका हुआ है जबकि नजदीक में ही 40-45 वर्ष पूर्व निर्माण पुल की स्थिति दयनीय हो चुकी है। मंदिर पुजारी का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण बहुत ही उन्नत इंजीनियरिंग से किया गया था। इस मंदिर को तीन तलो में निर्माण कराया गया है पहला तल जो सबसे ऊपर है जिसमे मंदिर बना हुआ है वह तल, नदी के तल से लगभग 17 फिट की ऊंचाई में तराशे हुए पत्थरों से अष्ट कोणीय पैटर्न में एंटी लॉक पद्धति से बनाया गया है जो कि तल से ऊपर की ओर चौड़ाई कम है जिसके कारण से पानी का कटाव बहुत ही आसानी से हो जाता है। यह मंदिर तीन नदियों के संगम के मध्य वास्तुकला का अद्भुत और आश्चर्यजनक नमूना है।
दूसरा तल पहले तल के नीचे कुछ मिटर तक है उसके बाद मंदिर का फाउंडेशन तीसरा तल में है जो कि सीधा अंदरूनी धरातल के विशाल पत्थरो से जुड़ा हुआ है।
मंदिर के मंडप में बहुत सारे देवी देवताओं की प्रतिमा भी स्थापित की गई है और मंदिर के गर्भगृह में मुख्य आराध्य देव पंचमुखी भगवान शंकर जी का शिवलिंग स्थापित है। मंदिर प्रांगण में सैकड़ो वर्ष पूर्व का विशालकाय बरगद है। मंदिर प्रांगण में ही मा दुर्गा जी का भी मंदिर है।
एक जनश्रुति कथा के अनुसार जब नदी में भीषण बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है तो कुलेश्वर मंदिर से राजिम मंदिर की ओर एक आवाज सुनाई देता है की मामा बचाओ मामा बचाओ तब राजिम मंदिर की ओर से आवाज आती है कि भांजा कुछ नही होगा फिर धीरे धीरे पानी कम हो जाता है। पिछले कई सौ वर्षों से ठाकुर परिवार के पुजारी राजिम के इन मंदिरों में अपनी सेवा पीढ़ी दर पीढ़ी प्रदान कर रहे है। जिसमे हमे पुजारी जी ने बताया कि दरअसल में ये दोनों मंदिर शिव मंदिर है जिसमे से एक शिव मंदिर में मामा पक्ष के पुजारी अपनी सेवा देते है तो दूसरे मंदिर में भांजा पक्ष के पुजारी। इसलिए ये मान्यता यहां बनी हुई है।
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