भारतीय इतिहास के साथ विचारधारा की समस्या ऐसी है कि उसकी प्रवृत्ति “क्या भूलूं क्या याद करूं” जैसी हो गयी है। कितने लोग जानते हैं कि कोई राजा दाहिर थे जिन्होंने भारतीय सीमांत पर, धर्मांधता से भरे और क्रूरता पूर्ण अरब आक्रमणों का सामना किया, अपना बलिदान दिया। क्या आप जानते हैं कि भारत पर पहला अरब आक्रमण सिंध पर नहीं अपितु वर्तमान मुम्बई के निकट अवस्थित थाना पर हुआ था? यह बात है वर्ष 636 ई. की; क्या आप जानते हैं कि यह पूर्णत: नौ-सैनिक अभियान था जिसमें अरब असफल हुए और वापस खदेड़ दिये गये थे? अपने प्रभाव का विस्तार और इस्लाम के प्रचार का नशा अरबों को बार बार भारत पर आक्रमण के लिये बाध्य करता रहा और अब उनके निशाने पर था सिंध का क्षेत्र। माना कि सिंध परिक्षेत्र अब पाकिस्तान का हिस्सा है लेकिन भारत का अतीत कोई सात-आठ दशक पुरानी बात तो नहीं? सिंध परिक्षेत्र हमारी आत्मा का भी हिस्सा है, हमारे राष्ट्रगान में भी गर्व से उच्चारित होता है। इसी सिंध का गौरव थे राजा दाहिर जिनकी निर्णायक पराजय वर्ष 712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम के हाथों हुई थी। मुहम्मद बिन कासिम पाकिस्तान में नायक है, भारतीय इतिहास की पुस्तकों में भी आक्रांता परंतु विजेता की तरहा पढाया जाता है लेकिन राजा दाहिर कौन था इस प्रश्न के उत्तर में दस में से नौ सिर “हम नहीं जानते” की मुद्रा में झूलने लगते हैं, कैसा दुर्भाग्य है?
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