*शिक्षक की नौकरी छोड़ आधुनिक पद्धति से खेती कर युवक प्रति माह लाखों रुपए कमा रहा*
। छत्तीसगढ़ राज्य को धान का कटोरा कहा जाता है क्योंकि यहाँ के अधिकतर किसान धान की खेती करते हैं। भारत के अधिकतर राज्यों में छत्तीसगढ़ से ही चावल की सप्लाई की जाती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है क्योंकि यहाँ की 60 से 70 प्रतिशत आबादी खेती पर ही निर्भर है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में निवास करने वाले लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि ही है। वर्तमान परिदृश्य में खेती के उन्नत तकनीकों व विभिन्न शासकीय योजनाओं के चलते कृषि एक खास व्यवसाय के रूप में उभर कर सामने आया है। धान के अलावा अन्य अनाज, दलहन, तिलहन, फलों व सब्जी की खेती कर आज के किसान लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं, साथ मे अपने क्षेत्र के कई बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने का भी कार्य कर रहे हैं। ऐसे ही एक किसान भानुप्रतापपुर विकासखण्ड में भी हैं जिन्होंने अपनी शिक्षक की नौकरी छोड़कर सब्जी की खेती शुरू करते हुए एक मिसाल कायम की है।
भानुप्रतापपुर विकासखण्ड के ग्राम मोहगांव निवासी किसान संजय बेलसरिया ने बताया कि उनकी माता जी हिरई बेलसरिया पारम्परिक रूप से कृषि का कार्य करती हैं। 15 एकड़ भूमि में कृषि कार्य करते हुए बच्चों को अच्छी परवरिश के साथ ही अच्छी शिक्षा भी दिलाई। जिसकी बदौलत वर्ष 2005 में शिक्षक की नौकरी पाने में संजय सफल रहे। लगभग 10 वर्षों तक नौकरी करने के बाद उन्हें माताजी के साथ कृषि कार्य मे सहयोग करने की इच्छा हुई। उन्होंने 2015 में नौकरी छोड़ कर पारम्परिक खेती में उन्नत तरीके अपनाते हुए ड्रिप सिस्टम लगाया और लगभग 12 एकड़ में सब्जी का उत्पादन शुरू किया। इसके लिए कृषि विभाग से निःशुल्क पौधे और अनुदान में बोर भी मिला। धीरे-धीरे प्रदेश के किसानों से सम्पर्क बढ़ा और छत्तीसगढ़ युवा प्रगतिशील किसान संघ में सदस्य बने। संघ की बैठकों में जाकर विभिन्न शासकीय योजनाओं और कृषि के उन्नत तरीकों की जानकारी हासिल की।
इन सब्जियों की खेती में है अच्छी आमदनी
संजय ने बताया कि वे मुख्य रूप से खीरा, मिर्ची, टमाटर, भिंडी, बैगन, लौकी व करेला उगाते हैं। स्थानीय मंडियों के साथ ही शहर की बड़ी मंडियों में इन सब्जियों की खासी डिमांड हैं। उनके फार्म से यह सब्जियां भिलाई की सब्जी मंडी में भेजी जाती हैं। आज सब्जी की खेती की बदौलत वे महीने 1 लाख रुपये तक आमदनी कमा रहे हैं इसके साथ ही अपने क्षेत्र के अन्य किसानों को कृषि के तरीके भी सीखा रहे हैं। उनके फार्म में रोजाना 40 से 50 मजदूरों को रोजगार भी दिया जाता है। इसके अलावा मजदूरों के घर मे सुख या दुख के कार्यक्रम में निःशुल्क सब्जी भी देते हैं।
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