Subscribe My Channel For More New videos:[ Ссылка ] अग्निहोत्री बन्धु
आज के व्यस्त और त्रस्त समाज में मधुर गायन और उसमें भक्ति संगीत की भूमिका, जलती धूप में गंगाजल के स्पर्श जैसी है। इस पावन सलिला में अनेक सुधा धारायें हैं, जिन्होंने मानव मन की आध्यात्मिक प्यास को तृप्ति दी है। ऐसी ही शीतल सुखद स्वर लहरी काअमृतपान है राकेश-देवेश के युगल स्वर में भक्ति गान का सुनना। अग्निहोत्री बन्धु के नाम से सुविख्यात इस गंगा जमुनी संगीत माधुरी में स्वर और लय की जो जुगलबन्दी है, उसका अपना प्रभाव है। देखने में ये दोनों एक-दूसरे के बिम्ब-प्रतिबिम्ब हैं, तो स्वर संगम में एक-दूसरे के पूरक।
भजनगायकी की परम्परा मध्य युग के सन्त साहित्य के इतिहास से भी प्राचीन है। कथा गायन, हरि संकीर्तन या अन्य गाथा गायन परम्पराओं में पद गायकों या भजनीकों के विविध स्वरूप मिलते हैं। उसी परम्परा में ईश्वर की उपासना में तप:पूत साधकों की भाँति, स्वर वन्दना करते राकेश-देवेश के भजन सुनना, केवल इस जुगल जोड़ी के स्वर माधुर्य का अनुभव करना ही नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण भक्ति भाव का अनुभव करना भी है। अग्निहोत्री बन्धुओं की भाषा, शब्द चयन, उच्चारण, बन्दिशों का माधुर्य तथा भक्त गायकों जैसा प्रेमिल और निश्छल व्यवहार ही उन्हें अपने उद्देश्य के निकट लाता है। उनके भजनों का श्रवण, प्रेम की गंगा में स्नान करने जैसा है। प्रभु की महिमा गाने से कहीं अधिक पुण्य उसे सुनने में है। यही कारण है कि राकेश-देवेश का वक्ता और श्रोता जैसा रूप उन्हें भक्त और भगवान का पद प्रदान करता है। यदि एक ओर उनकी छवि राम-लक्ष्मण की है, तो दूसरी ओर लव-कुश की। कौन किसमें समाहित है यह देखना, सुनना और अनुभव करना स्वयं में एक तीर्थयात्रा है। राकेश-देवेश वन्दना करते हैं अपने स्व० माता पिता-श्रीमती चन्द्रकान्ति एवं श्री ब्रज नारायण अग्निहोत्री जी की, जिनसे उन्हें भक्ति व संगीत की प्रेरणा मिली। उनकी गायन प्रतिभा को संवारा, निखारा और उसे नित नये आयाम दिये सरस संगीतज्ञ, सहज साधक, परमपूज्य गुरूदेव श्री विनोद चटर्जी ने, जिनके प्रति राकेश-देवेश सदैव नतमस्तक हैं।
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