रक्षाबंधन एक भावनात्मक भारतीय त्यौहार है। यह त्यौहार इतना मनभावन, अनूठा और सार्थक है कि सनातन धर्म की परिधि को लांघ कर यह विविध मतावलम्बियों के मध्य भी समान सम्मान और आस्था से मनाया जाता है। यह बात अपनी जगह ठीक है तथापि स्मरण कीजिये कि जब भी आपने रक्षाबंधन पर कोई विमर्श सुना होगा, निबंध पढा होगा या कि गंगा-जमुनी तहजीब पर सम्भाषण सुने होंगे तब रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायू का प्रसंग अवश्य आके संज्ञान में लाया गया होगा। रक्षाबंधन से जुड़ी पारम्परिक घटनाओं और मत-मान्यताओं से अधिक हमारी पाठ्यपुस्ताकों ने हमें बताया है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने हमला किया तब चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिख कर तथा राखी भेज कर सहायता करने का निवेदन किया। सौ बार बोला गया झूठ सच हो जाता है इसी का जीवित उदाहरण है यह सामान्य अवधारणा कि हमायू ने अपनी बहन मान कर रानी कर्णावती की सहायता की। इस तरह का धतूरा बेच कर पागल बनाया जाता है और आक्रांताओं को महिमामण्डित किया जाता रहा है। आईये तथ्यों-साक्ष्यों के आलोक में जानने का प्रयास करते हैं कि वास्तविकता में क्या हुआ था।
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