भारत के सबसे पवित्र स्थलों में से एक प्रयाग नगरी जहां तीन नदियों का संगम होता है गंगा यमुना और पौराणिक काल में बहने वाली सरस्वती। यहां नए वर्ष के आरंभ से माघ मेले का प्रारंभ होता है। इस मेले की विराटता का अनुमान ऐसे लगाया जा सकता है की प्रमुख तिथियों पर 30 लाख से भी अधिक श्रद्धालु देश विदेश से आकर संगम में डुबकी लगाते हैं। वर्ष की पहली पूर्णिमा के दिन देश के अलग-अलग भागों से साधु संत महात्मा तपस्वी मठाधीश और प्रसिद्ध अखाड़े यहां पर एकत्रित होते हैं। सभी का उद्देश्य होता है कल्पवास अर्थात संगम के किनारे बैठ कर वेद-पुराणों का अध्ययन करते हुए अध्यात्म के द्वारा स्वयं को जानना एवं जीवन के मर्म को समझना।
इलाहाबाद की संगम नगरी में 2018 माघ मेले का प्रारंभ हो चुका है इसमें 6 प्रमुख पर्व होंगे जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होंगे 2 जनवरी को पौष पूर्णिमा से शुरुआत होने के बाद 14 जनवरी को मकर संक्रांति 16 जनवरी को अमावस्या 22 जनवरी को वसंत पूर्णिमा और 31 जनवरी को माघ पूर्णिमा जिस का समापन होगा 13 फरवरी अर्थात महाशिवरात्रि के दिन। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस दिन करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच सकते हैं। 2019 में अर्ध कुंभ मेले का आयोजन होगा उस दृष्टि से इस मेले का आयोजन प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा एक ट्रायल के रूप में देखा जा सकता है।
संगम की इस पवित्र धरती पर यह मेला सिर्फ पौराणिक महत्व ही नहीं रखता बल्कि व्यापार के लिए भी एक विस्तृत वातावरण का निर्माण करता है जिसमें सरकार द्वारा कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसमें प्रमुख रुप से पारंपरिक हस्तशिल्प, नमामि गंगे, स्वच्छता अभियान, सर्व शिक्षा अभियान इत्यादि के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए जगह-जगह बैनर और पोस्टर लगाए जाते हैं।
डेढ़ महीनों के लिए यह जगह एक धार्मिक स्थल के रूप में संचालित होती है।
प्रयाग उत्तरकाशी हरिद्वार इत्यादि प्रमुख धार्मिक जगहों पर माघ मेले का आयोजन इसी प्रकार किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि प्रतिष्ठान पुरी के नरेश पुरुरवा के द्वारा माघ मेले के अनुष्ठान के कारण अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी। वही ब्रिंग ऋषि के सुझाव पर बाघ जैसे मुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के बाद ही श्राप से मुक्ति मिली थी पद्म पुराण के अनुसार माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित सभी प्रकार के उपा ताप जलकर भस्म हो जाते हैं इस प्रकार माघ मेले का अपना एक धार्मिक महत्व भी है।
माघ मेले की यह परंपरा कई वर्षों से निरंतर चली आ रही है और भविष्य में भी निरंतर चलती रहेगी मनुष्य जन्म लेगा मृत्यु को प्राप्त करेगा और उसकी राख गंगा में प्रवाहित हो जाएगी इसी अंतिम सत्य से साक्षात्कार हेतु माघ मेले एवं कुंभ की महिमा सदैव रहेगी।
In Hindu tradition Triveni Sangam is the "confluence" of three rivers. Sangama is the Sanskrit word for confluence. The point of confluence is a sacred place for Hindus. A bath here is said to flush away all of one's sins and free one from the cycle of rebirth.
One such Triveni Sangam, in Prayag (Allahabad) has two physical rivers — Ganges and Yamuna — and the invisible Saraswati River. The site is in Prayag, India. A place of religious importance and the site for historic Kumbh Mela held every 12 years, over the years it has also been the site of immersion of ashes of several national leaders, including Mahatma Gandhi in 1948.
The Allahabad Kumbh Mela is a mela held every 12 years at Prayag (Allahabad), India. The exact date is determined according to Hindu astrology: the Mela is held when Jupiter is in Taurus and the sun and the moon are in Capricorn.[1] The fair involves ritual bathing at Triveni Sangam, the meeting points of three rivers: the Ganga, the Yamuna and the mythical Sarasvati. The latest Allahabad Kumbh Mela took place in 2013 and became the largest religious gathering in the world with almost 120 million visitors. The next one is scheduled for 2025, with an Ardh Kumbh Mela scheduled for 2019.
The Mela is one of the four fairs traditionally recognized as Kumbh Melas. An annual fair, known as Magh Mela, has been held in Allahabad since ancient times (early centuries CE), and is mentioned in the Puranas. However, the earliest mention of a Kumbh Mela at Allahabad occurs only after the mid-19th century. The Prayagwals (local Brahmins of Allahabad) are believed to have adopted the kumbha myth and the 12-year cycle of the Haridwar Kumbh Mela for their annual Magh Mela around this time. Since then, every 12 years, the Magh Mela turns into a Kumbh Mela, and six years after a Kumbh Mela, it turns into an Ardh Kumbh ("Half Kumbh") Mela.
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