पारस पत्थर का रहस्य - Mystery of 'Paras stone' in Madhya Pradesh's Raisen fort
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रायसेन। रायसेन का किला इतिहास की अनूठी दास्तान है। 11 वीं शताब्दी के आस-पास बने इस किले पर कुल 14 बार विभिन्न राजाओं, शासकों ने हमले किए। तोपों और गोलों की मार झेलने के बाद आज भी यह किला सीना तानकर खड़ा है। भोपाल से 45 किमी दूर जिला मुख्यालय रायसेन में स्थित किला 1500 से अधिक ऊंची पहाड़ी पर लगभग दस वर्ग किमी में फैला है। इतिहासकारों के अनुसार रायसेन किला का निर्माण एक हजार ईपु का माना गया है।
रायसेन के किला की चाहर दीवारी में वो हर साधन और भवन हैं, जो अमूमन भारत के अन्य किलों में भी हैं। लेकिन यहां कुछ खास भी है, जो अन्य किलों पर नजर नहीं आता। किला पहाड़ी पर तत्कालीन समय का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और इत्र दान महल का ईको साउंड सिस्टम इसे अन्य किलों से तकनीकी मामलों में अलग करता है।
क जगह एकत्र होता है पानी
लगभग दस वर्ग किमी में फैले किला पहाड़ी पर गिरने वाला बारिश का पानी भूमिगत नालियों के जरिए किला परिसर में बने एक कुंड में एकत्र होता है। नालियां कहां से बनी हैं, उनमें पानी कहां से समा रहा है, कितनी नालियां हैं। ये सब आज तक कोईनहीं जान पाया। सदियों पुराने इस वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से तत्कालीन शासकों की दूर दृष्टि और ज्ञान का अंदाजा लगाया जा सकता है।
जब का है ईको साउंड सिस्टम
इत्रदान महल के भीतर दीवारों पर बने आले ईको साउंड सिस्टम की मिशाल हैं। एक दीवार के आले में मुंह डालकर फुसफुसाने से विपरीत दिशा की दीवार के आले में साफ आवाज सुनाई देती है। दोनो दीवारों के बीच लगभग बीस फीट की दूरी है। यह सिस्टम आज भी समझ से परे है।
मंदिर, मस्जिद और महल
किला परिसर में बने सोमेश्वर महादेव मंदिर के अलावा हवा महल, रानी महल, झांझिरी महल, वारादरी, शीलादित्य की समाधी, धोबी महल, कचहरी, चमार महल, बाला किला, हम्माम, मदागन तालाब है।
किला से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं
17 जनवरी 1532 ई. में बहादुर शाह ने रायसेन दुर्ग का घेराव किया।
06 मई 1532 ई. को रायसेन की रानी दुर्गावति ने 700 राजपूतानियों के साथ दुर्ग पर ही जौहर किया।
10 मई 1532 ई. को महाराज सिलहादी, लक्ष्मणसेन सहित राजपूत सेना का बलिदान।
जून 1543 ई. में रानी रत्नावली सहित कई राजपूत महिलाओं एवं बच्चों का बलिदान।
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