Daily Reflection with Aneel Aranha
translated by Vani Gracias into
Hindi.
शीर्षक : दो पुत्रों की कहानी
दिनांक : 15 दिसंबर 2020 (मंगलवार)
पवित्रशास्त्र : मत्ती 21: 28-32
''तुम लोगों का क्या विचार है? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उसने पहले के पास जाकर कहा, " बेटा, जाओ आज दाखबारी मे काम करो" । उसने उत्तर दिया, 'मैं नहीं जाऊँगा', किन्तु बाद में उसे पश्चात्ताप हुआ और वह गया। पिता ने दूसरे पुत्र के पास जा कर यही कहा। उसने उत्तर दिया, 'जी हाँ पिताजी! किन्तु वह नहीं गया। दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की?'' उन्होंने ईसा को उत्तर दिया, ''पहले ने''। इस पर ईसा ने उन से कहा, ''मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- नाकेदार और वैश्याएँ तुम लोगों से पहले ईश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे। योहन तुम्हें धार्मिकिता का मार्ग दिखाने आया और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया, परंतु नाकेदारों और वेश्यायों ने उस पर विश्वास किया। यह देख कर तुम्हें बाद में भी पश्चात्ताप नहीं हुआ और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया।
प्रतिबिंब
दो पुत्रों के इस दृष्टांत में, येशु एक पिता के बारे में बात करते है जो अपने दो पुत्रों को दाखबारी या अंगूर के बागान में जाने और काम करने के लिए कहता है। पहला पुत्र कहता है कि वह जाएगा, लेकिन नहीं जाता, दूसरा कहता है कि वह नहीं जाएगा, लेकिन जाता है। तब येशु लगभग आलंकारिक लगने वाला एक प्रश्न पूछते है: "दोनों में से किसने पिता की इच्छा पूरी की?" जवाब, काफी स्पष्ट रूप से, दूसरा बेटा है, लेकिन येशु उन धार्मिक नेताओं के लिए एक संकेत देने की कोशिश कर रहे है, जिनसे वह बोल रहे थे। "दोस्तों," उन्होंने कहा, "कर वसूलने वाले और वेश्याएं आपको ईश्वर के राज्य में खदेड़ देंगे या हरा देंगे । ऐसा क्यों, ये तुम जानते हो?" मुझे यकीन है कि वे इतने चौंक गए थे की जवाब देने के बारे में सोच ही नहीं पाए। लेकिन यह एक सवाल है जिसका हमें जवाब देना जरूरी है, क्योंकि इसमें हमारे लिए प्रभाव है, स्पष्ट रूप से एक शाश्वत प्रभाव।
तो, हम इसे स्पष्ट रूप से समझते हैं। फरीसी दुसरे बेटे की तरह क्यों थे? क्योंकि उन्होंने ईश्वर को हाँ कहा था, लेकिन वे, ईश्वर ने कहा हुआ कुछ भी नहीं कर रहे थे। लेकिन, आप वाद कर सकते हैं, की फरीसी सभी नियमों का पालन कर रहे थे, नहीं क्या? हाँ, लेकिन वे जो भी नियम का अनुसरण कर रहे थे, उनमें से अधिकांश उनके अपने बनाए हुए थे! और इस प्रक्रिया में वे उन चीजों को पूर्णतः भूल गए थे जो वास्तव में ईश्वर के लिए महत्वपूर्ण था: न्याय और दया और विश्वास या आस्था! (मत्ती २३:२३ देखें)। इस वजह से की वे अपनी असफलताओं को देख ही नहीं पाते थे, उनका मानना था कि उन्हें पश्चाताप करने की कोई आवश्यकता नहीं है। कोई पश्चाताप नहीं; क्षमा नहीं। क्षमा नहीं; कोई मोक्ष नहीं। आप समझ सकते हैं? तो, फिर पापियों को प्रवेश कैसे मिले? क्योंकि उन्हें अपने पापीपन का एहसास हुआ। उन्होंने इसे माना और इसे कबूल किया । उन्होंने पश्चाताप किया और उन्हें क्षमा या माफी दी गई।
आइए हम दृष्टांत पर लौटते हैं, क्योंकि कुछ और बहुत महत्वपूर्ण चीजें हैं जिन्हें समझने की हमें आवश्यकता है। एक, पिता अपने दोनों बेटों से प्यार करता था। वह दोनों में कोई भेदभाव नहीं रखता था। जैसा कि पवित्रशास्त्र कहता है, " वह भले और बुरे, दोनों पर अपने सूर्य को रोशन करता है तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर बारिश बरसाता है।"(मत्ती 5:45)। दो, दोनों बेटे पापी थे। फिर, जैसा कि पवित्रशास्त्र कहता है, " क्योंकि सभी ने पाप किए और सब ईश्वर की महिमा से वंचित रहे गये।" (रोमियों 3:23)। हमें खुद को पहले तथ्य की याद दिलाने की आवश्यकता है, साथ ही साथ खुद को दूसरे तथ्य की याद दिलाने की भी आवश्यकता है! नहीं तो हकीकत में बहुत बड़ा खतरा है, हम फरीसियों की तरह बन जाएंगे ।
तीन, इस दृष्टान्त में जो बेटें हैं, हम उनमें से एक हैं। और हमारे पिता हमसे कह रहे हैं: "आज अंगूरों के बागान में जाकर काम करो!" ये बागान, भटकी हुई या खोए हुए आत्माओं की दुनिया है। हमारे पिता यानी के परमेश्वर को हमारी सहायता चाहिए अपने खोए हुए बच्चों को घर वापस लाने के लिए । यह निस्संदेह है की, वे चुटकी बजाते ही उन बच्चों को वापस ला सकते है, लेकिन अपनी असीम बुद्धिमत्ता से उन्होंने हमें चुना इस कार्य में सहभागी के तौर पर। और क्यों नहीं? क्या ये आनंद की बात नही के बेटा अपने पिता के व्यवसाय में उनको मदद करे? एक बेटे - येशूने - कि। वो भी क्रूस पर मरने की हद तक। हमारे बारे में क्या है? क्या हम आज्ञा पालन करने वाले हैं? अंत में, यह निर्धारित होगा कि हम वास्तव में किस पुत्र की तरह हैं।
तो, क्या हम आज अंगूरों के बागान में काम करने जा रहे हैं, या हम इसे एक और दिन के लिए स्थगित करने जा रहे हैं?
Translated from the English “Daily Reflection with Aneel Aranha”.
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