सन्तों के श्रीमुख से सुना कि जो वस्तु या क्रिया ईश्वर से विमुख कर दे वो तामसिक और जो ईश्वर से जोड़ दे वो सात्विक होती है। जैसे निद्रा को तामसिक कहा गया है परंतु जब भक्तजन उसी निद्रा से अपनी भावनाओं की पूर्ति करते हैं तो वही निद्रा सात्विक कहलाती है। इस भाव में भी जीव की यही प्रार्थना है कि हे प्रभु मेरे जीवन में भी क्रोध, मोह, ईष्र्या आदि कितने ही काँटे हैं, परन्तु अगर आपका स्पर्श हो जाएगा तो मेरी बात बन जाएगी....
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