Mesmerising and soothing bhajans by Ravindra Jain, Suresh Wadkar & Kavita KrishnaMurthy.
1. Ghunghat Ke Pat Khol (00:00 Minutes)
2. Kachu Lena Na Dena (05:27 Minutes)
3. Japo Re Man Ram Naam (11:59 Minutes)
4. Tori Mori Lagan (17:30 Minutes)
5. Raghuvar Tumko Meri Laaj (24:04 Minutes)
6. Prabhu Tene Kaso Khel Racha (28:29 Minutes)
7. Jatan Se Aud Chunari (32:10 Minutes)
8. Hari Bin Jag (39:53 Minutes)
9. Hari Hari Bhaj (45:34 Minutes)
1.
घूंघट के पट खोल रे तोहे राम मिलेंगे ।।
घट-घट में वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल री।।
धन योवन का गर्व न कीजै, झूठा पचरंग चोल री ।।
सुन्न महल में दीप बारिले, आसन सों मत डोल री।।
जोग जुगत सो रंग महल में, पिया पायो अनमोल री।।
कहें कबीर आनन्द भयो है, बाजत अनहद ढोल री।।
2.
कछु लेना न देना मगन रहना।।
पांच तत्व का बना पींजरा।
जा में बोले मेरी मैना।।
तेरा साईं तेरे अंदर।
अब तो देख सखि खोल नयना।।
गहरी नदिया नाव पुरानी।
खेवटिया से मिले रहना।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो।
गुरू के चरण में लिपट रहना।।
3.
जपो रे मन राम-नाम सुखदाई।
राम-नाम के दो अक्षर में, सब सुख शांति समाई।।
राम-नाम के सुमिरण से नर, भवसागर तर जाई।
नाम लेत ही तरे भक्तजन, क्यों नहीं करो कमाई।।
पति छोड़ा परिवार भी छोड़ा, नाम की महिमा गाई।
राम-नाम के कारण बन गयी, पागल मीराबाई।।
4.
तोहिं मोरि लगन लगाये रे फकिरवा।
सोवत ही मैं अपने मंदिर में,
सब्दन मारि जगाये रे फकिरवा।
बूड़त ही भव के सागर में,
बहियां पकरि समुझाये रे फकिरवा।।
एकै वचन-वचन नहिं दूजा,
तुम मोसे वेद छुड़ाये रे फकिरवा।।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
प्रानन प्रान लगाये रे फकिरवा।।
5.
रघुवर तुमको मेरी लाज।
सदा-सदा मैं सरन तिहारी, तुमहि गरीब-निवाज।।
पतित उधारन विरद तुम्हारो, श्रवनन सुनी आवाज।
हौं तो पतित पुरातन कहिये, पार उतारो जहाज।।
अघ-खंडन दुखभंजन जन के, यही तिहारो काज।
तुलसीदास पर किरपा कीजै, भगति-दान देहु आज।।
6.
प्रभु तैंने कैसो खेल रचायो, मैं तो देख-देख विसमायो।।
देव रूप हो स्वर्गलोक में, अमृत पान करायो।
सुंदर-सुंदर अपसर गायन, सुनसुन मन हरसायो।।
मनुज शरीर धार धरणी पर, अन्न शाक फल खायो।
पशु पाक्षी मृगरूप बनाकर, बन जंगल बिचरायो।।
जलचर होकर नदियां सागर, सरवर सैल करायो।
दानव नाग पताल लोक में, रमण कियो मन भायो।।
आपहि नाना भोजन बनकर, आपहि भोग लगायो।
ब्रह्मानंद सकल जग माहीं, घट-घट बीच समायो।।
7.
प्रभु तैंने कैसो खेल रचायो, मैं तो देख-देख विसमायो।।
देव रूप हो स्वर्गलोक में, अमृत पान करायो।
सुंदर-सुंदर अपसर गायन, सुनसुन मन हरसायो।।
मनुज शरीर धार धरणी पर, अन्न शाक फल खायो।
पशु पाक्षी मृगरूप बनाकर, बन जंगल बिचरायो।।
जलचर होकर नदियां सागर, सरवर सैल करायो।
दानव नाग पताल लोक में, रमण कियो मन भायो।।
आपहि नाना भोजन बनकर, आपहि भोग लगायो।
ब्रह्मानंद सकल जग माहीं, घट-घट बीच समायो।।
7.
गाफिल मत हो चुनरी वाली,
बड़ी अनमोल तेरी चुनरी की लाली।
यह है नैहर की चुनरी गुजरिया, जतन से जरा ओढ़ चुनरी
ओढ़ चुनरी, यहां-वहां यूं ही मत छोड़ चुनरी
रखवारी में तू रख न कसरिया
जतन से जरा ओढ़ चुनरी
बाबुल तोरा सयान बुनकर, चुनरी में धागे सजाये चुन-चुनकर
नौ-दस मास बुनन में लागे, तब चुनरी रखी दुनिया के आगे
ओढ़ चुनरी, यहां-वहां यूं ही मत छोड़ चुनरी
कैसे बुनी, नहीं किसी को खबरिया
ईड़ा, पिंगला, सुष्मना है ऐसी, गंगा, जमुना, सरस्वती जैसी
उन्नचास मारूत बहे सुन री, उनमें लहरावे तेरी चुनरी
ओढ़ चुनरी, यहां-वहां यूं ही मत छोड़ चुनरी
सोवें चुनरी की ओट में सांवरिया
दुनिया में ढूंढ़ी औरों में बुराई, अपनी बुराई से आंख चुराई
अपने दागन पे पर्दा गिरावे, औरन की चुनरी के दाग गिनावे
ओढ़ चुनरी, यहां-वहां यूं ही मत छोड़ चुनरी
कहीं दुनिया उठाये न उगंरिया
ज्ञानी इस चुनरी का मान बढ़ावे, मूरख मैली करे माटी में मिलावे
दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी, जैसी लाये थे वैसी ही छोड़ी
ओढ़ चुनरी, यहां-वहां यूं ही मत छोड़ चुनरी
आगे बाबुल के झुके न नजरिया
8.
साधो हरि बिन जग अंधियारा।
कोई जानेगा जाननहारा।।
या घट भीतर सोना-चांदी, या ही में लगा बजारा।
या घट भीतर हीरा-मोती, या ही में परखन हारा।।
या घट भीतर काशी-मथुरा, या ही में सिरजनहारा।
या घट भीतर राम बिराजे, या ही में ठाकुर द्वारा।।
या घट भीतर तीन लोक हैं, या ही में करतारा।
कहें कबीर सुनो भाई संतों, या ही में गुरू हमारा।।
9.
भोर भई अभी सोया है तू।
पायेगा क्या खुद खोया है तू।।
झूठे नातों की माया तज प्यारे।
हरि-हरि हरि-हरि भज प्यारे।।
गुरू चरणों में आ, वो जो करेंगे कृपा।
होगी हरि से भेंट सहज प्यारे।।
जो कुछ इस ब्रह्मांड में है, वह सबकुछ है, इस तन में।
और ब्रह्मांड का नाथ बिराजे, तेरे अंतर्मन में।।
ब्रह्म है वह, ब्रह्मांश है तू, सार है वह सारांश है तू।
गुरूवर से यह भेद समझ प्यारे, हरि-हरि हरि-हरि भज प्यारे।।
जप-तप साधन भजन से दुर्लभ, जिब ईश्वर को पाना।
उब पत्थर को पानी करता, आंसू का नजराना।।
आंखें मूंद के ध्यान लगा, निश्चित ही वो करेगा दया।
इतनी जल्दी न धीरज खो प्यारे, हरि-हरि हरि-हरि भज प्यारे।।
नित्य निरंजन, भवदुखभंजन भज प्यारे।
सच्चिदानंद रूप सुपावन भज प्यारे।।
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