गौरीकुंड एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थयात्रा है , जो कि उखिमठ से 28 कि.मी और सोनप्रयाग से 5 कि.मी की दुरी पर समुन्द्र तल से 1982 की ऊँचाई पर देवभूमि उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिले में मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है | ऐतिहासिक दृष्टि से गौरीकुंड प्राचीन काल से विद्यमान है | यहाँ से केदारनाथ मंदिर की दूरी 14 किलोमीटर है , जो पैदल अथवा घोड़े , डाँडी या कंडी में तय की जा सकती हैं । इस स्थान से केदारनाथ के लिए पैदल रास्ता प्रारंभ होता है | यह कुंड गढ़वाल हिमालय में 6000 फीट की एक प्रभाव्स्शाली ऊँचाई पर स्थित है | पहाड़ी इलाको का भव्य नज़ारा और कुंड के निकट बहती वासुकी गंगा के चारो ओरे उज्जवल हरियाली देखने के लिए एक आकर्षक जगह है | हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार यह माना जाता है कि गौरीकुंड वह स्थान है , जहाँ देवी पारवती ने सौ साल तक भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए ध्यान या तपस्या करी थी , यहां मान्यता है कि जो भी महिला माता पार्वती की आराधना करे उसे मनचाहा फल प्राप्त हो सकता है । गौरी कुंड के निकट गौरा माई का एक प्राचीन मंदिर है , जो कि देवी पारवती को समर्पित है | गौरीकुंड के निकट प्रसिद्ध “ त्रियुगीनारायण मंदिर “ भी स्थित है , जहाँ भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था | इस मंदिर में युगल की मूर्तियों की जटिलताएं हैं । इस स्थान के पास दो पवित्र स्नान पूल भी उपस्थित है , जिनमे से एक पूल में गर्म पानी सल्फर के निशान के साथ निकलता है और दुसरे कुंड से ठंडा पानी निकलता है , जिसे गौरीकुंड कहा जाता है | इस कुंड का पानी अक्सर बदलता रहता है ,गर्म पानी से तेज पानी मन्दाकिनी नदी से निकलता है , जो कि नजदीक से बहती है |
पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव ने गंगा को अपनी जटा में बांध लिया था । शिव का स्पर्श पाकर वह पवित्र हो गईं । यह पार्वती को अच्छा नहीं लगा था कि वो हमेशा शिव के साथ रहें । ऐसे में जब इस कुंड के पास से कोई यात्री गंगाजल लेकर कोई गुजरे तो पानी में उबाल आ जाता है । मान्यता है कि यदि कोई महिला इस कुंड में गंदे वस्त्रों से स्नान करे या वस्त्र कुंड में फेंक दे तो कुंड का पानी सूख जाता है ।
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