मंदिर के बारे में:
उज्जैन स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान महाकालेश्वर मंदिर के समीप हरसिद्धि मार्ग पर प्राचीन रुद्रसागर झील के किनारे स्थित है गौरी शंकर पुत्र एवं प्रथमपूज्य भगवान श्री गणेश जी का बड़ा गणेश जी मंदिर... इसमें विराजित भगवान् श्री गणेश की प्रतिमा अपनी भव्यता एवं विशालता के कारण पूरे विश्व में स्थित गणेश जी की कई प्रतिमाओं में से एक है इसके भव्य विशाल रूप के कारण इन्हें बड़ा गणेश जी के नाम से जाना जाता है.उज्जैन यात्रा के लिए जाने वाले श्रद्धालु बड़ा गणेश जी के दर्शन कर अपनी यात्रा का शुभारम्भ करते हैं.
मंदिर में स्थित एकदंत भगवान् गणेश की प्रतिमा अपने भव्य रूप के साथ साथ इसकी निर्माण विधि के कारण भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है... भगवान् गणेश के इस खूबसूरत स्वरुप को देखकर यहाँ आने वाले भक्त भाव विभोर हो उठते हैं.. जैसे गणेश जी साक्षात् अपने जीवंत विशाल काय रूप में भक्तों के सामने खड़े होकर उनपे सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखने का आशीर्वाद दे रहे हों...हर रोज़ यहाँ हज़ारों श्रद्धालु भगवान् गणेश के इस बड़ा गणेश स्वरुप का दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं और उनकी दयादृष्टि प्राप्त करते हैं..
मंदिर/प्रतिमा का निर्माण:
उज्जैन में स्थित बड़ा गणेश के इस मंदिर की स्थापना कब हुई इसका कोई पुख्ता प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है पर कहते हैं मंदिर में स्थित गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना पंडित नारायण जी व्यास के अथक प्रयासों द्वारा लगभग 120 वर्ष पूर्व की गयी थी । उनके द्वारा गणेश जी की इस विशालकाय प्रतिमा के निर्माण में अनेक प्रकार के प्रयोग भी किए गए थे।
गणेश जी की इस प्रतिमा के निर्माण से सम्बंधित एक जनश्रुति के अनुसार - श्री गणेश के अनन्य भक्त पंडित नारायण जी व्यास को 16 वर्ष की आयु में स्वप्न में गणेश जी के विराट स्वरुप के दर्शन हुए और वह मनोहारी विराट रूप पंडित जी के मन में बस गया और अपने इस स्वप्न साकार करने का निश्चय कर पंडित नारायणजी हर बुधवार को उज्जैन से चार किलोमीटर दूर पैदल चलकर चिंतामण गणेश मंदिर में भगवान से याचना करते रहे। और फिर वो दिन आया जब चिंतामन गणेश जी ने उनकी याचना स्वीकार की और नारायण व्यास जी ने बड़ा गणेश जी के भव्य स्वरुप का निर्माण करवाकर उनकी स्थापना की.
बड़ा गणेश जी की विशालकाय प्रतिमा:
बड़ा गणेश जी मंदिर में आकर्षण का प्रमुख केंद्र गणेश जी की इस विशालकाय प्रतिमा का निर्माण है जिसको जानकर और इस मूर्ती को देख कर हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है ...कहते हैं.. गणेश जी की इस भव्य प्रतिमा को तैयान करने में लगभग ढाई वर्ष का समय लगा था। यह मूर्ति करीब 18 फीट ऊंची और 10 फीट चैड़ी है। गणेश जी की इस मूर्ति की सूंड दक्षिणावर्ती है जो बहुत ही कम देखने को मिलती है। कि इस विशाल प्रतिमा को बनाने में सीमेंट के स्थान पर ईंट, चूने व बालू रेत का प्रयोग किया गया है.. मसाले के रूप में गुड़ और मेथीदाने का उपयोग किया गया है। इतना ही नहीं देश की सात मोक्ष पुरियों- जैसे मथुरा, माया, अयोध्या, काँची, उज्जैन, काशी व द्वारिका सहित अन्य अनेकों प्रमुख तीर्थ स्थलों की मिट्टी और पवित्र जल, गौशाला की मिट्टी और बहुमूल्य रत्न जैसे हीरा पन्ना, पुखराज, मोती, माणिक का भी इस मूर्ति के निर्माण में उपयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त मूर्ती में बने गणेश जी के चेहरे के निर्माण में सोने – चांदी की धातु, सूंड, हाँथ और कान के लिए ताम्बा, पैरों के निर्माण में लोहे की छड़ों का प्रयोग किया गया है..
कहा जाता है कि प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के बाद 13 साल तक गणेश जी की प्रतिमा बिना छत के खुले आसमान के नीचे टीन की छत के नीचे रही । फिर 1954 में एक स्थायी छत का निर्माण किया गया..गणेश जी की मूर्ति के दोनों ओर खड़ीं रिद्धि और सिद्धि की मूर्तियों को मानव आकार में ही बनाया गया है... बड़ा गणेश जी की इस मूर्ती को साल में 4 बार चोला चढाने की परम्परा है...कहते हैं इस चोले को चढाने में 15 दिन का समय लगता है.. इस चोले को 25 किलो सिंदूर और 15 किलो घी के मिश्रण से तैयार किया जाता है..
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