सच्ची घटना एक मुस्लिम भक्त रसखान की कथा :-
एक बार कही भगवतकथा का आयोजन हो रहा था |व्यास गद्दी पर बैठे कथा वाचक बड़ी ही सुबोध और सरल भाषा में महिमामय भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओ का सुंदर वर्णन कर रहे थे | उनके समीप ही बृजराज श्याम सुंदर का मनोहारी चित्र रखा था | Raskhan रसखान भी उस समय कथा श्रवण करने पहुचे | ज्यो ही उनकी दृष्टि व्यास गद्दी के समीप रखे कृष्ण कन्हैया के चित्र पर पड़ी | वह जैसे स्तभित रह गये | उनके नेत्र भगवान के रूप में माधुर्य को निहारते गये जैसे चुम्बक लोहे को अपनी तरफ खींचता है |उसी प्रकार रसखान का हृदय मनमोहन की मोहिनी सुरत की तरफ खींचा जा रहा था | कथा की समाप्ति पर रसखान एकटक उन्हें ही देखते रहे |
जब सब लोग चले गये तो व्यासजी ने उनकी तरफ देखा और जब उनकी अपलक दृष्टि का केंद्र देखा तो व्यास महाराज मुस्कुराने लगे | वह उठकर रसखान के पास आये |
“वत्स ! क्या देख रहे हो ?” उन्होंने सप्रेम पूछा |
रसखान ने प्रश्न पूछा “पंडित जी ,सामने रखा चित्र भगवान श्रीकृष्ण का ही है न ”
व्यासजी ने कहा “हाँ ! यही उन्ही नटवर नागर का चित्र है ”
रसखान गदगद कंठ से बोले | “कितना सुंदर चित्र है | क्या कोई इतना दर्शनीय और मनभावन भी हो सकता है ?”
व्यासजी ने कहा “जिसने इतनी दर्शनीय सृष्टि का निर्माण कर दिया वह दर्शनीय और मनभावन तो होगा ही ”
अब रसखान ने कहा “पंडित जी , यह मनमोहिनी सुरत मेरे हृदय में बस गयी है | यह साक्षात इस अद्भुद मुखमंडल के दर्शन करने का अभिलाषी हु | क्या आप मुझे उनका पता बता सकते हो ?”
व्यासजी ने कहा “वत्स ब्रज के नायक तप ब्रज में ही मिलेंगे न ”
रसखान जी ने कहा “फिर तो मै ब्रज को ही जाता हु ”
जिसके हृदय में भाव जागृत हुए और प्रभु से मिलने की उत्कंठा तीव्र हो जाए ,उसे संसार में कुछ ओर दिखाई नही पड़ता है | Raskhan रसखान भी ब्रज की तरफ चल पड़े और वृन्दावन धाम में जाकर ही निवास किया | ब्रज की रज से स्पर्श होते ही मलिनता नष्ट हो जाती है |
भगवती कलिन्दी के पवन जल की पवित्र शीतलता के स्पर्श से ही रसखान के भावपूर्ण हृदय में प्रेमोवेग से कम्पन्न होने लगा | वृन्दावन के कण कण से गूंजती कृष्णनाम की सुरीली धुन ने उन्हें भाव विभोर कर दिया | धामों में धाम परमधाम वृन्दावन जैसे स्वर्ग की अनुभूति करा रहा था | Raskhan रसखान ने इस दिव्यधाम की अनुभूति को अपने पद में ऐसे व्यक्त किया
या लकुटीअरु कमरिया पर राज तिहु पुर कौ तजि डारो |
आठहु सिद्दी नवो निधि कौ सुख नन्द की गाय चराय बिसारो |
रसखान सदा इन नयनहि सौ बृज के वन तडाग निहारौ |
कोनही कलधौत के धाम करील को कुंजन उपर वरौ |
फिर रसखान के हृदय में गिरधारी के गिरी गोवर्धन को देखने की इच्छा हुयी तो यह गोवर्धन जा पहुचे | वहा श्रीनाथ जी के दर्शनों के लिए मन्दिर में घुसने लगे |
“अरे-रे …रे…रे … कहा घुसे जा रहे हो ?” द्वारपाल ने टोक दिया “तुम्हारी वेशभूषा तो दुसरी है तुम मन्दिर में नही जा सकते हो ” “यह कैसा प्रतिबंध ! वेशभूषा से भक्ति का क्या संबध ?”
“मै कुछ नही सुनना चाहता | मै तुम्हे अंदर नही घुसने दूंगा ”
“भाई मै भी इन्सान ही हु | तुम्हारे ही तरह मैंने भी एक स्त्री के गर्भ से जन्म लिया है |तुम्हारी ही तरह ईश्वर ने मुझे भी भजन सुमरिन और दर्शन का अधिकार दिया है फिर तुम मुझे प्रभु के दर्शनों से क्यों वंचित रखना चाहते हो ?”
“अपने ये तर्क किसी ओर को सुनाना | मै विधर्मी को मन्दिर में नही घुसने दे सकता हु मै इसलिए तैनात हु ”
“परन्तु | ”
“तुम इस प्रकार नही मानोगे ” द्वारपाल ने गुस्से से रसखान को सीढियों से धक्का दे दिया |रसखान उस व्यवहार पर व्यथित तो हुए और उन्हें आश्चर्य भी हुआ कि ब्रज में ऐसी मतिबुद्धि वाले इन्सान भी रहते है परन्तु उन्हें श्याम सखा पर उन्हें विश्वास था |रसखान ने अपने को पुरी तरह से अपने कृष्ण सखा के हवाले करके अन्न जल त्याग दिया
देस बिदेस के देख नरेसन ,रीझी की कोऊ न बुझ करैगो |
ताते तिन्हे तजजि जान गिरयो ,गुन सौ गुन औगुन गंठी परैगो |
बांसुरी वारों बडो रिसवार है श्याम जो नैकु सुटार ठरैगो |
लाडिलो छैल वही तो अहीर को पीर हमारे हिये हरैगो |
भगवान भी कब अपने भक्त की हृदय वेदना से अनभिज्ञ थे | भक्त की विकलता तो भगवान को भी विकल कर देती है |प्राण वल्लभ भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्त की विरलता का आभास किया और भक्त की सारी पीड़ा हर ली | हरि का तो यही कार्य होता है | भक्त के समक्ष साक्षात प्रकट होकर भगवान ने द्वारपाल के दुर्व्यवहार की क्षमा माँगी | फिर रसखान को गौसाई विट्ठलनाथ जी के पास जाने का आदेश दिया |
Raskhan रसखान प्रभु का आदेश पाकर गोसाई जी के पास पहुचे और उन्होंने उन्हें गोविदकुंड में स्नान कराकर दीक्षित किया | फिर तो जैसे रसखान के अंदर भक्ति काव्य के स्त्रोत फुट पड़े | आजीवन भगवान कृष्ण की लीला को काव्य के रूप में वर्णन करते हुए ब्रज रहे | केवल भगवान ही उनके सखा था ,संबधी थे ,मित्र थे | अन्य कोई चाह नही थी | कोई लालसा नही थी | परन्तु एक इच्छा जो उनके पदों में स्पस्ट झलकती है कि वह जन्म जन्मान्तर ब्रज की भूमि पर ही जन्म लेने की थी |
मानुष हो तो वही “रसखान ” बसों बृज गोकुल गाँव के गवारन जो पसु हो तो कहा बस मेरो चरो नितनदं की धेनु मंझारण |
पाहन हौ तो वही गिरी को जो धरयो कर छत्र पुरन्दर कारन |
जो खग हो तो बसेरो करो नित कालिंदी फुल कदम्ब की डारन |
यह उनकी इच्छा थी कि उन्हें किसी भी योनी में जन्म मिले पर जन्म भूमि ब्रज ही हो | उच्च कोटि के काव्य और भक्ति के धनी रसखान ने प्रभु स्मरण करते हुए 45 वर्ष की आयु में निजधाम की यात्रा की ,जिनके दर्शनों के लिए कितने ही योगी सिध्पुरुष तरसा करते है | उन्ही भगवान श्रीकृष्ण भक्तवत्सल भगवान ने अपने हाथो से
Krishan Bhajan : Batao Kahan Milenge Shyam
Singer : Lalit Mastana
Lyrics : Harshit
Music : Fatafat Digital
Director : Fatafat Digital
Digital Work : Ajay Kumar
Presented By : Lalit Mastana
Producer : Fatafat Digital
FD2203266362/Tr20097
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