महाबलीपुरम तमिलनाडु में समंदर किनारे बसे प्राचीन मंदिरों के इस शहर की खूबसूरती पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. महाबलीपुरम को मामल्लापुरम भी कहा जाता है
{ महाबलीपुरम मंदिर } Mahabalipuram Temple ! Mamallapuram Temple ! Mahabalipuram shore temple !
महाबलीपुरम का चीन के साथ काफी पुराना रिश्ता है। 18वीं सदी में यहीं पर तत्कालीन पल्लव राजा और चीन के शासक के बीच सुरक्षा समझौता हुआ था। साथ ही यह प्राचीन शहर अपने इतिहास और मंदिरों के बारे में जाना जाता है। शहर के समुद्र तट पर बने मंदिरों के समूह को चट्टानों को काट कर बनाए गए हैं।
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यह प्राचीन शहर अपने भव्य मंदिरों, स्थापत्य और सागर-तटों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। सातवीं शताब्दी में यह शहर पल्लव राजाओं की राजधानी था। द्रविड वास्तुकला की दृष्टि से यह शहर अग्रणी स्थान रखता है। यहाँ पर पत्थरो को काट कर मन्दिर बनाया गया।
रथ' गुफा मंदिर
महाबलीपुरम में आठ रथ हैं जिनमें से पांच को महाभारत के पात्र पांच पाण्डवों और एक द्रौपदी के नाम पर नाम दिया गया है। इन पांच रथों को धर्मराज रथ, भीम रथ, अर्जुन रथ, द्रौपदी रथ, नकुल और सहदेव रथ के नाम से जाना जाता है।
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महाबलीपुरम का नामकरण : इस शहर का नाम महान दानवीर असुर राजा महाबली के नाम पर रखा गया था। महाबली ने विष्णु के वामन अवतार को तीन पग भूमि दान में दी थी। वामन भगवान ने दो पग में त्रिलोक्य नाप दिया और फिर पूछा कि राजन तीसरा पग कहां रखूं तो महाबली ने कहा कि भगवन अब बस मेरे सिर ही बचा है आप उसी पर अपना पग रख लें। महाबली की दानवीरता और सत्यता से प्रभावित होकर वामन भगवान ने उन्हें पाताल लोक का चिरंजीवी राजा बनाकर खुद वहां के पहरेदार बन गए। कहते हैं कि आज भी महाबली जिंदा हैं।
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7वीं और 10वीं सदी के पल्लव राजाओं द्वारा बनाए गए कई मंदिर और स्थान यहां की शोभा बढ़ा रहे हैं। कांचीपुरम पर राज करने वाले पल्लवों की यह दूसरी राजधानी थी। गुप्त राजवंश के पतन के बाद पल्लव राजाओं ने दक्षिण भारत में राज किया। उन्होंने लगभग 3री सदी से 9वीं सदी के अंत तक अपना दबदबा बनाए रखा। पल्लव राजाओं के शासन काल के दौरान कई महान कवि, नाटक कार, कलाकार, कारीगर, विद्वान और संत हुए थे। कारीगरी के मामले में पल्ववों का साम्राज्य अग्रिण था।
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