Mukti Dham Mukam Temple Tour Guide Vlog | Mukam Mela | Bishnoi Temple | Jambhoji
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मुकाम मंदिर राजस्थान
मुकाम मंदिर या मुक्ति धाम मुकाम विश्नोई सम्प्रदाय का एक प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है। इसका कारण यह है कि इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक जाम्भोजी महाराज का समाधि मंदिर यहां स्थित है। जिसके कारण यहां साल में दो मेले भी लगते है। पहला फागुन वदि अमावस्या को और दूसरा आसोज वदि अमावस्या को। आसोज वाले मेले को इस सम्प्रदाय के महान कवि और साधु वील्होजी (संवत् 1598-1673) ने आरंभ किया था। इस संबंध में इनके प्रिय शिष्य और सुप्रसिद्ध कवि सुरजनदास जी पूनिया (संवत् 1640-1748) ने इन पर लिखे एक मरसिये में यह उल्लेख किया है:–
तीरथ जांभोलाव चैत चोठिये मिलायौ !
मेलों मंड्यो मुकाम लोक आसोजी आयो !!
मुक्ति धाम मुकाम का इतिहास
फाल्गुन के मेले पर देश के सभी भागों से बहुत बड़ी संख्या में विश्नोई सम्प्रदाय के लोग एकत्र होते है। संख्या की दृष्टि से देखा जाएं तो इतने अधिक विश्नोई यात्री राजस्थान में मान्य किसी भी प्राचीन मंदिर या साथरी पर एखत्र नहीं होते। इस विषय में दूसरा स्थान जाम्भोलाव (फलौदी) का है। जाम्भोजी के प्रति श्रृद्धा भाव निवेदन और उनके उपदेशों को पुनः स्मरण करने के अतिरिक्त अनेक सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा अन्य कई सामयिक बातों के विचार विमर्श और निर्णय निष्कर्ष हेतू विश्नोई समाज यहां एकत्र होता है। किन्तु मेले का प्रमुख कारण धार्मिक और सांस्कृतिक है। राजस्थान के अनेक धार्मिक स्थलों की भांति मुक्ति धाम मुकाम भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह राजस्थान राज्य के बीकानेर जिले के नोखा स्थान से लगभग 18 किलोमीटर तथा बीकानेर से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
मुक्ति धाम मुकाम की यात्रा और मुकाम मंदिर के दर्शन करने से पहले यह विस्तार जान लेते है कि जाम्भोजी जी कौन थे और उनका विश्नोई समाज में इतना महत्व क्यों है। जाम्भोजी का जन्म सन् 1508 में पीपासर (नागौर) नामक गाँव में हुआ था। जाम्भोजी के पिता का नाम लोहट जी पंवार था जो अत्यंत सम्पन्न किसान थे। जाम्भोजी की माता का नाम दांसा था जिन्हें केसर के नाम से भी बुलाते थे। जो छापर के मोहकम सिंह भाटी की पुत्री थी। जाम्भोजी सदेव ब्रह्मचारी रहे। सन् 1542 में मध्यप्रदेश भयंकर अकाल पड़ा इसमें जाम्भोजी ने हर प्रकार से लोक सेवा की और इसी समय में पीपासर से कुछ दूर स्थित समराथल नामक रेत के बड़े और ऊंचे टीले पर उन्होंने विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया। सभी वर्णों, वर्गों और पेशों के लोग सम्प्रदाय में दीक्षित हुए। जाम्भोजी का भ्रमण अत्यंत व्यापक था। देश विदेश में उन्होंने ज्ञानोपदेश किया था किंतु उनका कार्य क्षेत्र विशेषरूप से राजस्थान रहा था।
उत्तर प्रदेश के दो प्राचीन स्थानों लोदीपुर और नगीना के अतिरिक्त शेष सभी प्राचीन साथरी राजस्थान में ही है। जाम्भोजी ने भ्रमण करते हुए अपने साथ के व्यक्तियों सहित जिन विशेष विशेष स्थानों पर कई दिन तक ठहरकर ज्ञानोपदेश किया था। वे सभी सारथी कहलाए।विश्नोई समाज के प्राचीन मान्य स्थानों में पीपासर, समराथल, लोहावट, जांगलू, रोठू, जाम्भोलाव, रिणासीषर, भुयासर, गुढा, रूडकली, रामड़ावाह, दरीबा, समला, लोदीपुर, नगीना, लालासर, और मुकाम की विशेष गणना है।
जाम्भोजी की मृत्यु सन् 1593 के मार्गशीर्ष वदि नवमी को हुई थी। और इसके तीसरे दिन एकादशी को तालवा गांव के निकट उनको समाधि दी गई थी। जाम्भोजी का अंतिम मुकाम होने से उनका समाधि स्थान मुकाम नाम से प्रसिद्ध हो गया। सम्प्रदाय के कवियों ने तालवा और मुकाम में कोई भेद न कर दोनों को एक ही समझा है। तथा अनेक प्रसंगों में इसका विविध रूप से उल्लेख भी किया है।
○ QUERIES SOLVED :
1. मुक्तिधाम किस लिए प्रसिद्ध है?
2. मुकाम क्यों प्रसिद्ध है?
3. मुकाम कौन से जिले में है?
4. मुक्ति धाम मुकाम मेला कब है?
5. how to reach mukti dham mukam Temple ?
6. मुक्ति धाम मुकाम नोखा कैसे जाये ?
○ GEAR I USE :
Camera: Sony ZV E10L
Microphone: Boya by-m1
Tripod: Digitek dtr 550 lw Tripod
उद्देश्य - पवित्र और चमत्कारिक मंदिरों और भारत के पुराने धार्मिक और सांस्कृतिक विरासतों को उजागर करना |
🙏🏼🙏🏼 सीताराम 🙏🏼🙏🏼
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