Shaayar : फ़िराक़ गोरखपुरी
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काफिर : incapable, असमर्थ
जान-ओ-ईमाँ : life and belief
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बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ए ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं।
तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की`चादर तान लेते हैं
मेरी नजरें भी ऐसे काफ़िरों की जान-ओ-ईमाँ हैं
निगाहे मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं।
‘फ़िराक’ अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर
कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ए ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं।
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