Tunnel(सुरंग):-ऐसा भूमिगत (भूमि के नीचे का) मार्ग होता है, जिसे ज़मीन की सतह के नीचे की मिट्टी व पत्थर खोदकर बनाया गया हो। इसमें ऊपर की चट्टान या मिट्टी को हटाया नहीं जाता। सुरंग का निर्माण खोदने, विस्फोट के द्वारा मिट्टी-पत्थर का मलबा बनाकर हटाने, या अन्य किसी विधि से छिद्र बनाकर करा जाता है। आम भाषा में चट्टान या भूखंड तोड़ने के उद्देश्य से विस्फोटक पदार्थ भरने के लिए कोई छेद बनाना भी 'सुरंग लगाना' कहलाता है।
प्राचीन काल में सुरंग मुख्यतया तात्पर्य किसी भी ऐसे छेद या मार्ग से होता था जो जमीन के नीचे हो, चाहे वह किसी भी प्रकार बनाया गया हो, जैसे कोई नाली खोदकर उसमें किसी प्रकार की डाट या छत लगाकर ऊपरी मिट्टी से भर देने से सुरंग बन जाया करती थी। किंतु बाद में इसके लिए जलसेतु (यदि वह पानी ले जाने के लिए है), तलमार्ग या छादित पथ नाम अधिक उपयुक्त समझे जाने लगे। इनके निर्माण की क्रिया को सुरंग लगाना नहीं, बल्कि सामान्य खुदाई और भराई ही कहते हैं। बाद में चौड़ी करके सुरंग बड़ी करने के उद्देश्य से प्रारंभ में छोटी सुरंग लगाना अग्रचालन कहलाता है। खानों में छोटी सुरंगें गैलरियाँ, दीर्घाएँ या प्रवेशिकाएँ कहलाती हैं। ऊपर से नीचे सुरंगों तक जाने का मार्ग, यदि यह ऊर्ध्वाधर है तो कूपक और यदि तिरछा हो तो ढाल या ढालू कूपक कहलाता है।
प्राकृतिक बनी हुई सुरंगें भी बहुत देखी जाती हैं। बहुधा दरारों से पानी नीचे जाता है, जिसमें चट्टान का अंश भी घुलता है। इस प्रकार प्राकृतिक कूपक और सुरंगें बन जाती हैं। अनेक नदियाँ इसी प्रकार अंतभौम बहती हैं। अनेक जीव भूमि में बिल बनाकर रहते हैं, जो छोटे-छोटे पैमाने पर सुरंगें ही हैं।
■अन्य सुरंगे:-
● देबारी सुरंग : चित्तौड़-उदयपुरके बीच।
लंबाई 750 मीटर।
● कामली घाट सुरंग-I : मावली-मारवाड़मीटर गेज पर। लंबाई 250 मीटर।
● कामली घाट सुरंग-II : मावली-मारवाड़मीटर गेज पर। लंबाई 250 मीटर।
(उदयपुर-अहमदाबाद केबीच आमान परिर्वतन के तहत 800 मीटर लंबी रेल सुरंग बनेगी। यह प्रदेश की पांचवीं सुरंग होगी)
भारत मे सबसे लंबी सुरंग:-
★ पीर पंजाल सुरंग (जम्मू कश्मीर)। लंबाई11 किमी.
5.20 मीटर
चौड़ाई
6.15 मीटर
ऊंचाई
2150 मीटर
लंबाई
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