श्री जपजी साहिब हिंदी लिखित - SHRI JAPJI SAHIB HINDI READ ALONG
Japji sahib with lyrics in hindi - Japji Sahib Written in hindi
Japji sahib slow
जपुजी साहिब एक सिख प्रार्थना है जो गुरु ग्रन्थ साहिब के आरम्भ में है। इसकी रचना गुरु नानक देव ने की थी। जपुजी का आरम्भ 'मूलमंत्र' से होता है, उसके बाद इसमें ३८ और पद हैं, और अन्त में 'शलोक' (श्लोक) है। जो ३८ पद हैं वे अलग-अलग छन्दों में है।
गुरु ग्रन्थ साहिब की मूलवाणी जपुजी गुरु नानक द्वारा जनकल्याण हेतु उच्चारित की गई अमृतमयी वाणी है। 'जपुजी' एक विशुद्ध , सूत्रमयी दार्शनिक वाणी है जिसमें महत्वपूर्ण दार्शनिक सत्यों को सुन्दर, अर्थपूर्ण और संक्षिप्त भाषा में काव्यात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया गया है। इस वाणी में धर्म के सच्चे शाश्वत मूल्यों को बड़े मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसमें ब्रह्मज्ञान का अलौकिक प्रकाश है।
गुरु नानक की जन्म साखियों में इस बात का उल्लेख है कि जब गुरुजी सुलतानपुर में रहते थे, तो वे रोजाना निकटवर्ती वैई नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे। जब वे 27 वर्ष के थे, तब एक दिन प्रातःकाल वे नदी में स्नान करने के लिए गए और तीन दिन तक नदी में समाधिस्थ रहे।
वृतांत में कहा है कि इस समय गुरुजी को ईश्वर का साक्षात्कार हुआ था। उन पर ईश्वर की कृपा हुई थी और दिव्य अनुकम्पा के प्रतीक रूप में ईश्वर ने गुरुजी को एक अमृत का प्याला प्रदान किया थ। वृतांतों में इस बात की साक्षी मौजूद है कि इस अलौकिक अनुभव की प्रेरणा से गुरुजी ने मूलमंत्र का उच्चारण किया था, जिससे जपुजी साहिब का आरम्भ होता है।
समस्त जपुजी को मोटे तौर पर चार भागों में विभक्त किया गया है-
1. पहले सात पद,
2. अगले बीस पद,
3. इसके बाद के चार पद,
4. शेष सात पद।
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