अर्थ:
अरिष्टनेमि प्रभो! तुम जगत् के नाथ और अन्तर्यामी हो।
तुम विवाह -तोरण के पास जा लौट आये।यह अद्भुत और अनुपम काम किया तुमने।
तुमने शिव-सुन्दरी से प्रीति लगा कर राजीमती को छोड़ दिया।अद्भुत है तुम्हारी लीला।
प्रभो! तुमने श्रेष्ठ ध्यान कर केवलज्ञान पा लिया।इन्द्र और इन्द्राणी तुम्हें हर्षित होकर देख रहे हैं।
प्रभो! तुम्हारे कल्याणक -गर्भाधान,जन्म,दीक्षा,केवलज्ञान-प्राप्ति और परिनिर्वाण के समय देव तो आनंदित होते ही हैं,नैरयिक जीव भी प्रमुदितमना हो जाते हैं।
मोक्ष के सुखों से तुम्हारी प्रीति है,फिर भी तुम राग -रहित हो।तुम कर्म का हनन करते हो,फिर भी तुम द्वेष -रहित हो।
प्रभो! तुम्हारा चरित्र आश्चर्यकारी है।मैं बद्धांजलि होकर तुम्हें प्रतिदिन प्रणाम करता हूं।
तुम्हारा जप करने से मुझे सारभूत सुख मिला।
रचनाकाल -वि.सं. १९००, आश्विन कृष्णा चतुर्थी।
English Translation:
22nd Tirthankara Arishtanemi Prabhu
Lord Arishtanemi! You are the sovereign of the universe and immanent.
You turned back from the wedding archway. Your this action was splendid and nonsuch.
You endeared the Shiv Sundari (Moksha belle) and omitted the Rajimati (fiancee). Your spectacle is tremendous.
Lord! You did the transcendental meditation and attained the Keval Gyan. Being rejoiced, Indra and Indrani are seeing you.
Lord! It is obvious that Devas got rejoiced at the moment of your Panch Kalyanak - Chyavana Kalyanak, Janma Kalyanak, Diksha Kalyanak[, Kevaljnana Kalyanak and Nirvana Kalyanak, but Naraki Spirits also got happy at that moment.
Your endearment is with the pleasures of Moksha, still you lack Raga. You diminish the Karma but still you lack Dvesha.
Lord! Your character is marvellous. I beseechingly bow before you everyday.
I got essential rejoice by chanting you.
Time of Composing: V.S 1900, 4th day of Krishna Ashwin.
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