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00:00 - संगीत
( रचयिता - आनंदघनजी महाराज )
00:22 - गाथा 1
संभवदेव ते धुर सेवो सवे रे, लही प्रभुसेवन भेद;
सेवन कारण पहेली भूमिका रे, अभय अद्वेष अखेद. सं० १
01:22 - गाथा 2
भय चंचलता हो जे परिणामनी रे, द्वेष अरोचक भाव;
खेद प्रवृत्ति हो करतां थाकिये रे, दोष अबोध लखाव. सं० २
02:50 - गाथा 3
चरमावर्त हो चरमकरण तथा रे, भवपरिणति परिपाक;
दोष टळे वळी दृष्टि खूले भली रे, प्राप्ति प्रवचन-वाक. सं०३
04:17 - गाथा 4
परिचय पातिक-घातिक साधुशुं रे अकुशल अपचय चेत;
ग्रंथ अध्यातम श्रवण मनन करी रे, परिशीलन नयहेत. सं०४
05:45 - गाथा 5
कारणजोगे हो कारज नीपजे रे, एमां कोई न वाद;
पण कारण विण कारज साधिये रे, ए निज मत उन्माद. सं०५
07:12 - गाथा 6
मुग्ध सुगम करी सेवन आदरे रे, सेवन अगम अनुप ;
देजो कदाचित् सेवक याचना रे, आनंदघन रस रूप. सं०६
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