Ram Lakshman ki kahani in Marwadi || राम लक्ष्मण की कहानी मारवाड़ी मे || आर्यावर्त की कहानियां
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एक सुसरो और बहू थी तो उस सुसरा के रोज सुबह से भूख लग जाती। बहू बोली की सुसराजी आपके तो सुबह से भुख लग जावे आप तो किसी बात को नियम ले लो तो सुसरा ने नियम लियो कि रोज राम लक्ष्मण का मन्दिर जाकर फिर रोटी जीमूगां। वो रोज इसी तरह से कर तो फिर बहू उसके गरम-गरम रोटी देती। अब एक दिन वो मन्दिर जानो भूल गयो, बहू ने थाली पुरसी और वो जीमने बैठ गया। उसके याद आई की आज तो में मन्दिर नहीं गयो। दाल-चावल का हाथ भी नहीं धोया और मन्दिर गयो।
जब मन्दिर से आग तो हाथ में दाल चावल था वा हारा-मोती से चमकरया था। बहू बोली कि ससराजी आपका य हाथ हारा-माती से चमकरया था। बह बोली कि ससराजी आपका ये हाथ हीरा-मोती से चमकरया है। तब ससरा ने देख्या तो बोल्या कि म्हारे राम-लक्ष्मण | भगवान टूट्या है। तब बहू बोली कि देखो सुसराजी मेने कियो कि अपन किसी। बात को नियम लो तो भगवान अपनी सुनेगो। हे राम-लक्ष्मण भगवान उस सुसरा | के टूट्जो कहता सुनता हुकांरा भरता, अधुरी होय तो पूरी कर जो पूरी होय तो मान कर जो।
कहानी कहने के बाद लप्सी तपसी की कहानी कही जाती है :-
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