Gayatri Mata Aarti | गायत्री माता आरती - माँ गायत्री आरती | गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार
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ॐ भूर् भुवः सुवः ।
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो॑ देवस्यधीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या
गायत्री मंत्र के पहले नौ शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं...
ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी,
प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)
हिन्दी में भावार्थ
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
मंत्र जप के लाभ
गायत्री मंत्र का नियमित रुप से सात बार जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियाँ बिलकुल नहीं आती।
जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं, व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है।[1] बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति यानी स्मरणशक्ति बढ़ती है।
गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर होते हैं, यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं।
इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है।
यह मंत्र सर्वप्रथम ऋग्वेद में उद्धृत हुआ है। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। वैसे तो यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के १८ मंत्रों में केवल एक है, किंतु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरंभ में ही ऋषियों ने कर लिया था और संपूर्ण ऋग्वेद के १० सहस्र मंत्रों में इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे अधिक की गई। इस मंत्र में २४ अक्षर हैं। उनमें आठ आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। किंतु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतर के समस्त साहित्य में इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप इस प्रकार स्थिर हुआ:
(१) ॐ
(२) भूर्भव: स्व:
(३) तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है और जप में इसी का विधान किया है।
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About Dev Sanskriti Vishwavidyalaya
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya (D.S.V.V.) is a non-conventional center of higher learning, education and research and works with a primary focus of providing a confluence of modern education with the installation of human values in the students.
Dr. Chinmay Pandya currently serves as Pro Vice Chancellor of Dev Sanskriti Vishwavidyalaya University (DSVV). Following medical studies in India, he trained in the United Kingdom, where he gained Membership of the Royal College of Psychiatrists (MRCPsych).
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गायत्री परिवार/प्रज्ञा परिवार/युग निर्माण परिवार: — युग निर्माण योजना को सफल एवं विश्वव्यापी बनाने के लिए पारिवारिक अनुशासन में गठित सृजनशील संगठन, जिसे गायत्री उपासना के आधार पर गायत्री परिवार, व्यक्तित्व परिष्कार के लिए आवश्यक दूरदर्शी विवेकशीलता के आधार पर प्रज्ञा परिवार एवं मानव मात्र के समग्र नव निर्माण के लिए प्रतिबद्धता के आधार पर युग निर्माण परिवार कहा जाता है।लक्ष्य एवं उद्देश्य:
— मनुष्य में देवत्व का उदय, धरती पर स्वर्ग का अवतरण।— व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण।
— स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन, सभ्य समाज।— आत्मवत् सर्वभूतेषु, वसुधैव कुटुंबकम्।
— एक राष्ट्र, एक भाषा, एक धर्म, एक शासन।— लिंगभेद, जातिभेद, वर्गभेद से ऊपर उठकर सबको विकास का अवसर।योजना के उद्घोषक-विस्तारक— युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा—प्रखर प्रज्ञा - सजल श्रद्धा।
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