कर्मोदय के बीच में ध्रुव त्रिकाली शुद्धात्म देव की हृदय में स्वीकारता कर अपने ममल स्वभाव पर दृष्टि रखने वाले... सम्यक ज्ञान के सहकार से अपने उपयोग को अपने ज्ञायक स्वभाव की प्रग़टता में लगाने वाले ज्ञानी साधक की पर को देखने रूप पर्याय दृष्टि विला जाती है स्वयं में स्वयं के ज्ञायक पद को प्रगट करने की ललक ही मोक्ष मार्ग का आनंद देती है। *गुरु आज्ञा सर्वोपरि..* गुरु आज्ञा पर समर्पित भव्य जीव बहुमान पूर्वक देशना हृदयंगम करें।
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