श्री गुरु गोबिंद सिंह जी कहते हैं कि भगवान के ध्यान के नाम पर केवल नेत्र मूँद लेने से एवं भगवान की प्रसन्नता हेतु तीर्थ, व्रत और परिक्रमायें आदि करने से भगवान की प्राप्ति नहीं होती। भगवान को प्राप्त करने का आधार बनता है अंतर्घट में ब्रह्मज्ञान के द्वारा भगवान के दर्शन होने के बाद उपजा प्रेम! जिसने वो प्रेम पा लिया, उसने प्रभु को भी पा लिया।
आयें, ऐसे ही भावों को श्रवण करें श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा रचित इस शब्द के माध्यम से- जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो।
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