10 दिनों तक चलने वाले रथ परिक्रमा में विजयदशमी के दिन भीतर रैनी की रस्म पूरी की जाती है। जिसमें परंपरा के मुताबिक माड़िया जाति के ग्रामीण शहर के बीच स्थित सिरहसार भवन से आधी रात को रथ चुराकर मंदिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुम्हड़ाकोट जगंल ले जाते हैं और उसके बाद आज बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव शाही अंदाज में घोड़े में सवार होकर कुम्हड़ाकोट पहुंचते हैं। यहां वे ग्रामीणों के साथ नए चावल से बनी नवाखानी खाते हैं और ग्रामीणों को मान मनोवल कर समझा-बुझाकर रथ को वापस शहर लाया जाता है। आज भी बस्तर के राजकुमार की मौजूदगी में दशहरा के सभी रस्मों को विधि विधान से पूरा किया जाता है।
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