प्रभाकर पाण्डेय का बहुत ही सुन्दर सोहर || हमारा बेटा होई त तोहरा के बोलाईब नन्दो || #बेटा_के_गीत
प्रभाकर पाण्डेय का बहुत ही सुन्दर सोहर || हमारा बेटा होई त तोहरा के बोलाईब नन्दो || बेटा के गीत
प्रभाकर पाण्डेय का बहुत ही सुन्दर सोहर || हमारा बेटा होई त तोहरा के बोलाईब नन्दो || बेटा के गीत
प्रभाकर पाण्डेय का बहुत ही सुन्दर सोहर || हमारा बेटा होई त तोहरा के बोलाईब नन्दो || बेटा के गीत
सोहर / खेलवना
भोजपुरी में सोहर के बहुत बड़हन क्षेत्र बा , एह विधा के व्यापकता अतना बा कि एह में गंगा गीत से ले के छठ गीत तक के छवंक रहेला । एह विधा के व्यापकता खलिहा पुत्र जनम से नइखे बलुक , ओह से जुड़ल सामाजिक , आर्थिक , व्यवहारिक आ पारिवारिक जिनगी के बात सोहर के गीतन में मिलेला ।
भोजपुरी में दु गो विधा ह , एगो सोहर ह आ एगो खेलवना ह । खेलवना शुद्ध रुप से लइका भा लइकी के भइला प ही होला । कबो कबो एह के लइका होखे वाला होखे ओह से पहिलहूँ गवा जाला बाकिर मूल रुप से खेलवना लइका/लइकी के भइला के बादे होला । खेलवना के संबंध खेलावे से बा । महतारी घर के बड़ बुजुर्ग से ले के टोला मोहल्ला के बच्चा बड़ सब एह में बाझल रहे ला यानि कि खेलावे में ।
सोहर के दू गो रुप होला , एगो पुर्व पीठीका , दुसरका उत्तर पीठीका । पुर्व पीठीका में बच्चा के जनम से पहिले प्रसुता के ले के गावल गीत ।
पुर्व पीठीका -
जइसे - प्रथम गणेश पद ....
उत्तर पीठीका के उदाहरण -
जुग जुग जिअसु ललनवा ....
सोहर के माने होला " सोहिलो " जवना के जदि अउरी विस्तार दिहल जाउ त इ हो जाई " मंगलगीत" ।
कृष्णदेव उपधिया जी लिखत बानी कि सोहर शब्द खुद कतने गीत में आवेला -
बाजेला अनंद बधाव , महल उठे ' सोहर ' हो ।
उपधिया जी कहत बानी कि सोहर के मुख्य नाव ' मंगलगीत ' से बा । उँहा के एगो लोकगीत में एह के मंगल गीत के नाव से देखावत बानी -
गावहु ए सखि गावहु , गाइ के सुनावहु हो ।
सब सखि मिलि जुलि गावहु, आजु मंगल गीत हो ।
उपधिया जी आगे तुलसी बाबा के मंगल गीत के नाव प कोट करत लिखले बानी कि , सिरि राम जी के जनम आ बिआह के बेर मंगलगीत गवाइल बा -
' गावहि मंगल मंजुल बानी । सुनि कलरव कलकंठ लजानी ' ॥
सोहर के जदि प्रायोगिक माने आ अर्थ देखल जाउ त इ खुशी के गीत के एगो विधा ह । वंश के प्रगति वंश के बढन्ती पीढी में दिया बारे वाला उत्सव के बहुत बडहन खुशी के रुप में देखल जाला एह से कहीं ना कहीं सोहर मूल रुप से लइका के जनम से जुड़ गइल बा ।
ऐह सोहर गीत में धगरीन के प्रयोग कईल गईल बा । धगरीन लोग के बहुत महत्व रहल बच्चा के जन्म के बेरा काहें से उहे नार काटे के काम करत रहस।
एह लेख के लिखत घरी हम एगो लोकगीत पढत बानी जवना में प्रसुता बच्चा के जनम से पहिले अपना मन के भाव प्रगट करत बाड़ी -
सावन के सवनइया आंगन सेज डाली ले हो ।
ए पिया फुलवा फुलेला करइलिया गमक मन भावेला लो ॥
त सोहर के एगो इहो रुप ह , सोहर में श्रृन्गार से ले के करुण रस आ वियोग-विरह रस के प्रचुर मात्रा रहेला । सोहर में बहुत कुछ भाव समाहित बा । खेलवना मूल रुप से सोहर के ही एगो शाखा ह । भोजपुरिया इलाका में इ दुनो विधा मूल रुप से प्रसुता , वंश वृद्धि से ही जुड़ल बा । पिछला सई दू स साल के बीचे लोकगीतन प कुछ काम भइल बा जवना में लइका लइकी से इतर प्रसूता आ ह से जुड़ल कष्ट , श्रृन्गार प सोहर भा खेलवना लिखाइल बा ।
पुत्र प्राप्ति भा रुनुक झुनुक बेटी के मांगे वाला गीत के सोहर के श्रेणी में राखल एगो बहस के विषय बा । गंगाजी से बेटा मांगत , छठ माई से बेटा बेटी मांगत , अदितमल से बेटा मांगत । संझा पराती के कुछ गीत , गंगा गीत , छठ गीत , पिड़िया के गीतन में बहुत समानता मिलेला ।
आदर्श भोजपुरी क्षेत्र में छठ पूजा मूल रुप से गंगा जी के किनारे होत रहे , तब गंगा जी के बवाह आज के वर्तमान लेखा नइखे । भोजपुर बसल गंगाजी के किनार प रहे । त एगो गंगा गीत -
गंगा जी के उंच अररिया , तिवइया एक ......।
अब जदि देखल जाउ त छठ पूजा , गंगाजी के घाट प आ पुत्र पुत्री के कामना । एह रुप स्थिति के कल्पना के आधार प एह बात के मानल जा सकेला कि अइसन कुल्हि गीत मूल रुप से भक्ति भजन , भखौती , मनौती खातिर गवाइल बाड़ी स जवना के सोहर में गिनल त जा सकेला बाकि मूल रुप से सोहर ना होखे छठ गीत भा गंगा गीत में गिना सकेला । दूसर बात प्रकृति के संगे भोजपुरिया लोग आ लोकगीत के एगो आपन अलग जुड़ाव बा जवन सोहर से इतर बा , बाकि अइसन कुल्ह गीत वर्सेटाइल होली स हर जगह गवाली स ।
गंगा जी के एगो गीत जवना के उपधिया जी सोहर में लिखले बानी -
गंगा के उंच अरारवा , चढत डर लागेला हो
ताही चढि कोसिला नहाली ,मुकुती बनावेली हो ॥
हंसि के जे बोलेली गंगाजी , सुन ए कोसिला रानी हो ।
ए कोसिला कवन संकट तोहरा परले मुकुती बनावेलु हो ॥
सोनवा ए गंगाजी ढेर बाटे , रुपवा के पुछेला हो ।
मोरा रे सनतनिया के साध सनतति हम चाहिले हो ॥
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