🌸 तृप्तिदीप प्रकरण भारती तीर्थ जी द्वारा लिखा गया है।
🌸हमारी रति, तृप्ति, संतुष्टि प्रायः जगत की अलग वस्तुओं, विषयों में रहती है। परंतु ये तीनों आत्मा में ही हैं।
🌸जीवन मुक्त पुरुष को यह तृप्ति, जो कि निरंकुशा है, ज्ञान से ही प्राप्त है।
🌸इस अध्याय में जीव की सात अवस्थाएँ बतायी गयी हैं एवं बद्ध से लेकर निरंकुशा तृप्ति तक पहुँचने का मार्ग बताया गया है।
🌸यह अध्याय बृहदारण्यक उपनिषद् की श्रुति पर आधारित है।
🌸यदि जीव अपने को आत्मस्वरूप जान लेता है तो वह किसकी इच्छा करेगा? और उस इच्छा का कर्ता कौन होगा?
आगे के प्रवचन में इसी श्रुति के हर पद की व्याख्या होगी। इसमें सबसे पहले पुरुष कौन है यह बताएँगे।
#Panchadashi #TruptiDeep #VidyaranyaSwami #SwamiAdvaitananda #AdvaitaVedanta
Ещё видео!