Basant Panchami Special - सरस्वती चालीसा - Saraswati Chalisa with Lyrics :-
Lyrics :
॥ दोहा ॥
जय जगजननी शारदा, जगत व्यापिनी देवी ।
आदिशक्ति परमेश्वरी, जय सुरनर मुनि सेवी ॥
॥ चोपाई ॥
जय जय सरस्वती कल्याणी, जय जगदम्बे विणा पाणी ॥
तेरा नाम परम सुख दाई, तब महिमा त्रिभुवन मह छाई ॥ १॥
विध्या बुद्धि सुमति गति जननी, कुमति निवारिणी मंगल करनी ॥
जे ते ताल स्वर राग नर्तन, त्रिभुवन पूजित सब तव नंदन ॥ २॥
वाद्यकला की तू ही माता, श्रवण करत जग जेहि सुख पाता ॥
जहां लगी जगत ज्ञान विज्ञाना, सब तव समन सकल जग माना ॥ ३॥
काव्य कला की माँ कल्याणी, तभी कोविद वरकी तू वाणी ॥
शेष सहस थड तब गुण गावे, नारद तब पद ध्यान लगावे ॥ ४॥
मैथी सकोटि स्वर्गकर देवा, करत सकल मिली तब पद सेवा ॥
सनकादिक ऋषिगण दिगपाला, जपत सदा सब तेरी माला ॥ ५॥
सकल ज्ञान विज्ञान की धारा, कवी कोविद कर एक सहारा ॥
तुम चारो वेद रचाये, अखिल विश्व को ज्ञान सिखाये ॥ ६॥
छओ शास्त्र नव ग्रन्थ पुनिता, तुम्ही सब कर अम्बर सयिता ॥
रचयू अंब तुम सकल पुराना, पढ़ी पढ़ी पावत जग ज्ञाना ॥ ७॥
वाल्मीकि कर तुम्ही वाणी, वेद व्यास कर माँ कल्याणी ॥
तेरी महिमा यह जग जाना, सूरदास भय सूर्य समाना ॥ ८॥
देव दृष्टी जब तू माँ दीन्हि, सवालाख कविता रच दीन्हि ॥
तुलसीदास शरण जब आये, तब प्रसाद शुचि मति गति पाये ॥ ९॥
रचेउ ग्रन्थ रामायण पावन, भक्ति सुमति संग गति सरसवान ॥
शरण रहे कवी कालीदासा, भयऊ पूर्णतम मनकर आशा ॥ १०॥
विरचेउ ग्रन्थ अनेक महाना, भयऊ महाकवी सब जग जाना ॥
जे ते गुण विद्याकर नाता, तुम्ही सकल गुणनकर माता ॥ ११॥
तुमरी महिमा अगम अपारा, जानिके सकहि बूढ़ बेचारा ॥
शरणागत कवी अलख निरंजन, करहु मात मम भव भयभंजन ॥ १२॥
मोपरथ पाकर हु जगदम्बे, तेहु करण रती सदवती अंबे ॥
सब सुख आकर माँ तव चरणा, रहत चतुर नर तहि गव शरणा ॥ १३॥
तब पग पंकज जो नित ध्यावे, सकल पदारथ जग मह पावे ॥
शङ्खविदोर लक्ष्मी कर माया, बिन सहिसँग विनश्वर काया ॥ १४॥
जे नर मातु शरण तब आवे, ते नर अवसि परम पद पावे ॥
तब प्रसाद भव संकट मोचन, हियकर उभरहि विमल सुलोचन ॥ १५॥
सुमिरत ब्रह्म कपाट खुली जाहि, निरथ ही ब्रह्म रूप जग माहि ॥
तत्वज्ञान जब उपजहि मन में, आत्मब्रह्म निरतहि जन में ॥ १६॥
निर्थक मोहनी शाजट भागे, ह्रदय बीज सब सद्गुण जागे ॥
फिलही अमर यश यही जग माहि, अंतब्रह्म पद निश्चय पाहि ॥ १७॥
कसहीन मतहिन् मानसिक रोगा, तब पद भक्त करत नहीं सोगा ॥
अति अदभुत तब महिमा न्यारी, रहहि सदा संतुष्ठ पुजारी ॥ १८॥
जय जय सरस्वती सुखदात्री, विध्या बुद्धि कला की धात्री ॥
देहु कृपा करि विमल विलोचन, ब्रह्म ज्ञान भव संकट मोचन ॥ १९॥
जेहि पद पूजत सकल मुहीशा, तेहि पद पूजिव तेऊ चालीसा ॥
जे नर पढ़ी है नितचित लाई, लही है कला ज्ञान सुखदायी ॥ २०॥
॥ दोहा ॥
बसहु ह्रदय मह शारदा, सदा करहु कल्याण ।
देहु दया करिवास को, सद्विद्या सद्ज्ञान ॥
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