Subscribe to [ Ссылка ] for mouth watering Indian Food Recipes Support Vanity News by Shopping on Amazon
[ Ссылка ] (affiliate)
Support Vanity News by Shopping on Amazon [ Ссылка ] (affiliate) के. आसिफ ने 14 साल में बनाई ये फिल्म, पानी की तरह बहाए थे पैसे
मशहूर निर्देशक करीमुद्दीन आसिफ उन चुनिंदा लोगों में से रहे हैं जिन्होंने कुछ ही फ़िल्में बनाई, लेकिन ऐसा काम किया कि आज भी उन्हें याद किया जाता है. के आसिफ ने अपने करियर में 3 फिल्में निर्देशित कीं. जिनमें से एक फिल्म पूरी भी नहीं हो पाई. के आसिफ अपने काम करने के अंदाज के लिए मशहूर हैं. उन्हें मुगल-ए-आजम से जो लोकप्रियता मिली वो बहुत सारे लोग, अपने पूरे करियर में भी कभी नहीं हासिल कर पाते.
आसिफ ने मुगल ए आजम से 15 साल पहले ''फूल'' नाम की फिल्म बनाई थी. उन्होंने ''लव एंड गॉड'' भी बनाई, जो कि अधूरी रही. ये फिल्म 23 साल बाद 1986 में रिलीज हो सकी. आसिफ का जन्म 14 जून, 1922 को हुआ था और 9 मार्च 1971 में उनका निधन हो गया. के. आसिफ की पहली फिल्म कुछ खास नहीं कर सकी थी, लेकिन दूसरी फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ ने इतिहास बना दिया.
‘मुग़ल-ए-आज़म’ को बनाने में 14 साल लगे थे. ये फिल्म उस वक़्त बननी शुरू हुई जब हमारे यहां अंग्रेजों का राज था. शायद ये एक कारण भी हो सकता है जिसके चलते इसको बनाने में इतना वक़्त लगा. ये उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी. इस फिल्म की लागत तक़रीबन 1.5 करोड़ रुपये बताई जाती है. जो उस समय के हिसाब से बहुत ज्यादा मानी जाती है.
फिल्म के एक गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ को फिल्माने में 10 लाख रुपये खर्च किये गए, ये वो उस दौर की वो रकम थी जिसमें एक पूरी फिल्म बन कर तैयार हो जाती थी. 105 गानों को रिजेक्ट करने के बाद नौशाद साहब ने ये गाना चुना था. इस गाने को लता मंगेशकर ने स्टूडियो के बाथरूम में जाकर गाया था, क्योंकि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में उन्हें वो धुन या गूंज नहीं मिल पा रही थी जो उन्हें उस गाने के लिए चाहिए थी.
फिल्म के प्रोड्यूसर थे शपूरजी पलौंजी मिस्त्री, जिन्हें सिनेमा बिल्कुल पसंद नहीं था. वो फिल्में नहीं देखते थे, लेकिन नाटक देखने के शौकीन थे और इसके लिए अक्सर ओपेरा हाउस जाया करते थे, जहां पृथ्वीराज कपूर के नाटक होते थे. दरअसल यहीं से फिल्म की नींव बननी शुरू हुई.
पृथ्वीराज, आसिफ के हुनर से परिचित थे. तो उन्होंने ही शपूरजी से आसिफ की तारीफ करते हुए कहा, आपके पास बहुत पैसा है और आपके जैसा शख्स ही आसिफ जैसे पागल आदमी को फाइनेंस कर सकता है. पता नहीं कितने साल और कितने पैसे लगेंगे, पर मैं इतना यकीन से कह सकता हूं कि वो फिल्म अभूतपूर्व बनाएगा.’
पृथ्वीराज के कहने पर शपूरजी फिल्म के फाइनेंसर बने और तब फिल्म को पैसा मिलना शुरू हुआ. वैसे शपूरजी की दिलचस्पी के पीछे एक कहानी ये भी है कि शपूरजी अकबर की शख्सियत के दीवाने थे. आसिफ तो सलीम-अनारकली की मोहब्बत के कायल थे, जिसकी वजह से उन्होंने फिल्म बनाना शुरू किया, लेकिन शपूरजी की दिलचस्पी अकबर की वजह से जगी थी. हालांकि, शपूरजी फिल्म के इकलौते फाइनेंसर नहीं थे. आसिफ ने इन 16 सालों में जो भी कमाया, सब इसी फिल्म में लगा दिया.
Ещё видео!