मूल रचना - " कवि आशीष श्री जी"
नवीन रचना - "आदित्य सिंघई जी"(विद्यागुरू भक्ताम्बर मण्डल जबलपुर)
निर्देशन - शुभांशु जैन "शहपुरा"
स्वर - ब्र. सलोनी जैन
भजन
जिनने सब कुछ दिया है हमको...
हम उनको कुछ न दे पाए...
*विनती हमारी हे बड़े बाबा..*
*विद्यागुरु फिर मिल जाएँ....*
शब्द नहीं है मन व्याकुल है..
कैसे भाव बखान करु..
*गुरु आपको पुनः देखने..*
अपना जीवन दान करु....
बाग़ आपका दिया गुरूजी..
हम एक फूल न दे पाए..
*विनती हमारी हे बड़ेबाबा*
*विद्यागुरु फिर मिल जाएँ..*
एक आपको देखकर हँसते..
हम जीवन ज़ी सकते हैं...
*बिना आपके इस धरती पर..*
हम सांस नहीं ले सकते हैं...
जीवन रोशन किया आपने..
हम एक दीप न दे पाए...
विनती हमारी हे बड़ेबाबा...
*आचार्य श्री फिर मिल जाएँ..*
जन्म आपके इस धरती पर
धरती कों वरदान हुआ...
महावीर की परम्परा कों..
जैसे जीवन दान हुआ....
सागर जितना दिया उन्होंने..
हम एक बूंद न दे पाए...
*विनती हमारी हे बड़े बाबा..*
*विद्यागुरु फिर मिल जाएँ....*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
श्री ज़ी
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