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उत्तराखंड में पांच भाई पांडवों का बहुत महत्व है. जिनके नाम पर प्रत्येक वर्ष नवंबर-दिसंबर में उत्तराखंड में पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है. तो चलिए आज इस रिपोर्ट में आपको उन्हीं पांच भाई पांडवों के बारे में बताते हैं. आपने महाभारत के युद्ध के संदर्भ में कौरवों और पांडवों का जिक्र तो सुना ही होगा. इन्हीं के नाम पर उत्तराखंड के चमोली गढ़वाल में हर वर्ष पांडव लीला और पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है. इस आयोजन को लेकर लोगों में तमाम तरह की मान्यताएं हैं.
क्यों है उत्तराखंड वासियों के लिए पांडव नृत्य महत्वपूर्ण
महाभारत के युद्ध में पांडव अपने भाई कौरवों को मार तो देते हैं, किंतु इससे उन पर ब्रह्म हत्या का पाप चढ़ जाता है. इस बात से दुखी होकर पांडव स्वर्गारोहिणी की तरफ चल पड़ते हैं और रास्ते में अपने सारे अस्त्र-शस्त्र केदारखण्ड अर्थात गढ़वाल क्षेत्र में छोड़ देते हैं. कहा जाता है कि जिन-जिन स्थानों पर पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र छोड़े थे, उन स्थानों पर पांडव लीला का आयोजन किया जाता है. स्वर्गीय सर्वेश्वर दत्त कांडपाल के अतिरिक्त आचार्य कृष्णा नंद नौटियाल द्वारा गढ़वाली भाषा में रचित महाभारत के चक्रव्यूह का आयोजन भी विभिन्न स्थानों पर होता है. चक्रव्यूह के नाट्य रूप का मंचन गढ़वाल के रंगकर्मियों द्वारा देश के विभिन्न रंग महोत्सवों में किया जाता रहा है. चमोली जनपद में इन दिनों पांडव नृत्य की धूम है. गांव की खुशहाली और समृद्धि की कामना के साथ, हर वर्ष परंपरा अनुसार पांडव नृत्य का आयोजन होता है. जिसमें पांच भाई पांडव मनुष्यों पर अवतरित होते हैं. साथ ही माता कुंती, द्रोपदी, अभिमन्यु ,हनुमान, श्री कृष्ण आदि पांडव नृत्य के मुख्य पात्र के रूप में सामने आते हैं. इसके अलावा अन्य देवी देवता भी पांडव नृत्य में भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए अवतरित होते हैं. नौ दिनों तक दिन और रात पांडव ढोल-दमाऊ की ताल पर नृत्य करते हैं.
एक मान्यता यह भी है कि जब महाभारत काल में पांडवों और कौरवों का युद्ध हुआ तो पांडवों पर गुरु द्रोण का वध करने के चलते ब्रह्महत्या का पाप चढ़ गया. ब्रह्महत्या का पाप दूर करने के लिए पांडव हिमालय की क्षेत्रों में आए और गांव गांव भटकते रहे. पांच भाई पांडव में केवल युधिष्ठिर ही स्वर्ग पहुंचे थे. जो भी पांडव रास्ते में दम तोड़ते गए, वहीं परंपरा अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया गया. माना जाता है कि पांडवों की भटकती आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए गांव के लोग पांडव नृत्य का आयोजन करते हैं. दूर-दूर से लोग पांडव नृत्य देखने के लिए पहुंचते हैं. इसके अलावा यह भी मान्यता है कि पांडव अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए भी अवतरित होते हैं, गांव में जो भी रोग-दोष होता है उसे पांडव दूर करते हैं. पांडव लीला के अंतिम दिन पांडव गंगा स्नान करने के लिए नदी तट पर पहुंचते हैं, जहां गंगा स्नान के साथ-साथ पांडू राजा को तर्पण भी दिया जाता है. दीपावली के बाद प्रत्येक गांव में परंपरा अनुसार पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है. पांडव लीला का आयोजन करने वाले ग्रामीण मानते हैं कि पांडव लीला का आयोजन करने से उनके पशुओं में होने वाले खुरपका रोग से निजात मिलती है.
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