साल 1628, मुगल बादशाह शाहजहां की ताजपोशी के लिए देश के सभी छोटे बड़े राजे रजवाड़ों को मुगलिया दरबार में हाजिर होने का निमंत्रण भेजा गया जो निमंत्रण कम मुगल दरबार की श्याही से लिखा हुआ आदेश था। मुगल दरबार के हुक्म की नाफरमानी करना मतलब मुगल बादशाह के गुस्से को आमंत्रण था जिसका सीधा मतलब अपने राज्य की सुरक्षा पर आफत लेना।
देश के सभी छोटे बड़े राज्य मुगल दरबार में हाजिरी देने पहुंचे लेकिन एक राजा ऐसा भी जिसे मुगलों के पैरों में अपना सिर झुकाना स्वीकार नहीं था। वो मुगल बादशाह की नाराज़गी झेलने को तैयार था लेकिन किसी रूप में मुगलिया सल्तनता की अधीनता उसे कबूल नहीं थी।
मुगलिया हुक्म की नाफरमानी करने वाला वो बादशाह कोई और नहीं बल्कि गढ़वाल राज्य के राजा महीपति शाह थे। पंवार वंश का ये राजा जितना वीर था उससे कई गुना वीरांगना थी इनकी पत्नी रानी कर्णावती जिनकी कहानी आज हम आपको सुना रहे हैं।
अपने हुक्म की नाफरमानी मुगल बादशाह शाहजहां को हज़म नहीं हुई और वो गढ़वाल राज्य को नेस्तनाबूद करने की ख्वाहिश पाल बैठा और इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वो मौका तलाशने लगा। नीयति ने शाहजहां को ये मौका भी दिया। साल 1631 में महीपति शाह कुमाऊं से युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी जगह राजसिंहासन पर उनके बेटे पृथ्वीपतिशाह को राजगद्दी पर बैठाया गया। लेकिन 7 साल का वो बच्चा आखिर कैसे राजकाज संभालता। लिहाजा तख्त की बागडोर रानी कर्णावती ने अपने हाथों में ली।
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