।।चिरजा।।
राजल धर मृगपति को रूप भूप की लाज बचाई है।।टेर।।
एक दिन शाह ने कहि हुरम को खुदारूप केसों दियो तुमको।
ऐसी औरत हमारे नज़र नही आयी है।।1।।
हुरम कहि यह सुनहु दिलीपत रूपवान देखी नही औरत।
मोसू छोटी बहन शहर बिकाणे ब्याही है।।2।।
सुबह शाह बाहर को आया कोतवाल को तुरंत बुलाया।
पृथ्वीराज से कहो तेरी औरत बुलायी है।।3।।
पृथ्वीराज को पास बुलाया खुद दस्खत कागज लिखवाया।
दुति दो बुलवाया शाह ने गुप्त पढ़ायी है।।4।।
कागज देखत ही महाराणी तज दिया एक दम अनपाणी ।
प्रीतम तणी देख सहनाणी दिल्ली आयी है।।5।।
पीथल याद करी महामायी संकट हरण पधारो बाई।
जंगल घरते टेर सुणी वाहन तज आयी है।।6।।
महा जैल में बैठ भवानी सब भूपन मन देख गलानी।
हरण भूप को दुख रूप बब्बर दरसायी है।।7।।
डोली देख खुशी मन मायी जाय नजीक कनात उठाई।
सिंह रूप पकड़ शाह सत खंड सिधायी है।।8।।
कोप हुयो दुर्गा फरमावे पीर मना जो जान बचावे।
देख सगत नवलाख तेरो भख लेवण आयी है।।9।।
आदि भवानी तेरे आगे पीर कहाँ पैगम्बर भागे।
देख लोई इस बखत घटी सब को सकलायी है।।10।।
हिन्दू देव शरण में आया गाय गाय कहै प्राण बचाया।
नो रोज़ा छुड़वाय सगत सौगंध कढ़वाई है।।11।।
गाय-गाय सेसो सुनवानी क्रोध शांत भयी भवानी।
कवि किकर 'कल्याण' राज की चिरज़ा गायी है।।12।।
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