जब गोस्वामी तुलसीदास के लिये श्री कृष्ण ने लिया राम का रूप
जब भक्त के लिए भगवान् अपना स्वरुप बदल दे तो इसे भक्त की महानता कहा जाए या भगवान् की ? हमारे ग्रंथो में ऐसे
कई वृत्तांत मिलते है जब भक्त के कहने पर भगवान् ने अपनी लीला दिखाई। गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन के साथ
ऐसे कई वृत्तांत जुड़े हुए है जहाँ भगवान ने उन्हें अपने दिव्य दर्शनों से अनुगृहित किया. एक बार स्वयम् श्री हनुमान ने
उन्हें श्री राम के दर्शन कराये थे और एक बार ब्रज की यात्रा के दौरान तुल्सिदास जी ने अपनी अनन्य भक्ति से श्री कॄष्ण की
छवि में ही श्री राम के दर्शन कर लिये थे. आइये जानते है ये पूरी बात. कहा जाता है कि तुलसीदास एक बार ब्रजधाम
पधारे. उन्हे आशा थी कि उन्हे यहाँ राम भगवान के दर्शन होंगे पर वो जहाँ जाते थे वो कृष्ण भक्ति से सरबोर थे. यहाँ
वो जिस भी मंदिर गए वहां उन्हें राधा राधा की रट सुनाई दी लेकिन कहीं भी राम नाम सुनाई नहीं दे रहा था. तब
तुलसीदास ने दुखी होकर कहा कि शायद ब्रज में राम नाम की कद्र है ही नहीं, क्या यहाँ के लोगों की प्रभु राम से कोई बैर
है? यहाँ से वो ज्ञानगुदड़ी कृष्ण मंदिर गए जहाँ उन्हें श्री कृष्ण की मूर्ति दिखाई दी. तुलसीदास जी ने मूर्ति के पास जाकर
कहा क्या कहूं छवि आपकी, भले बने हो नाथ, तुलसी मस्तक तब नवे जब धनुष बाण लियो हाथ अर्थात आपकी छवि का
क्या ही वर्णन करूँ आप बहुत सज रहे है इस वेश में लेकिन तुलसीदास तभी इस मूर्ति के सामने शीश नवायेगा जब बांसुरी
के स्थान पर इनके हाथों में धनुष बाण रखा हो. तुलसीदास भगवान को राम रूप मे देखने को व्याकुल थे और इसलिये
उन्होने भगवान कॄष्ण से अनुरोध किया कि वे उन्हें राम रूप में दर्शन दे. कहते है कि उसी क्षण भगवान् ने तुलसीदास जी
को धनुष बाण लेकर श्री राम रूप में दर्शन दिए जिसके बाद आगे की पंक्तियाँ बनी कि तुलसी लख रूचि दास की, कृष्ण
भये रघुनाथ।“ अर्थात तुलसीदस जी के अनुरोध और भक्ति को देखकर श्री कॄष्ण राम बनकर उनके सामने आ गये. जिस
जगह पर श्री रामचंद्र ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए थे उस जगह को तुलसी रामदर्शन स्थल कहा जाता है गोस्वामी
तुलसीदास जी के अनन्य भक्त है इसका अर्थ ये बिलकुल नहीं कि उन्हें कृष्ण भगवान से प्रेम नहीं था. कहा जाता है कि
रामचरितमानस की रचना से तीन वर्ष पूर्व उन्होंने बृज में आकर १५७१ में ब्रज भाषा में कृष्ण गीतावली की रचना की
थी जिसमें तुलसीदास ने कॄष्ण लीला पर 61 पदों की रचना की थी.
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