अप्रैल 1994 में, रवांडा में दो साल के सैमुअल इशिम्वे के माता-पिता की हत्या कर दी गई. उनकी ही तरह देश के दस लाख से ज्यादा तुत्सी अल्पसंख्यकों का नरसंहार किया गया. तीस साल बाद, सैमुअल यह पता लगाने के लिए निकले हैं कि इन भयानक घटनाओं की वजह क्या थी.
वह रवांडा से जर्मनी और बेल्जियम तक की यात्रा करते हैं. ये दोनों देश छोटे पूर्वी अफ्रीकी देश पर शासन करने वाली पूर्व औपनिवेशिक ताक़तें थीं. उन्हें उम्मीद है कि इससे उन्हें देश के छोटे तुत्सी अल्पसंख्यक जातीय समूह के प्रति हुतू बहुमत की दुश्मनी के आधार को समझने में मदद मिलेगी. रवांडा और यूरोप में, सैमुअल इतिहासकारों और उस दौर के चश्मदीदों से मिलते हैं. वह यह समझना चाहते हैं कि ऐसा क्या हुआ कि उनकी मातृभूमि के लोग इस तरह से एक-दूसरे के खिलाफ हो गए. इसमें "हैमाइट परिकल्पना" के सिद्धांत की क्या भूमिका थी जिसने तुत्सी लोगों को नस्लीय श्रेष्ठता प्रदान की? 100 साल से भी पहले रवांडा से जर्मनी ले जाई गई सभी मानव खोपड़ियों के पीछे की कहानी क्या है? और, वह पूछते हैं, क्या पूर्व औपनिवेशिक शक्तियां इस बात के लिए दोषी हैं कि उनके माता-पिता को, कई अन्य रवांडावासियों की तरह मरना पड़ा? या क्या अप्रैल और जुलाई 1994 के बीच हुई भयानक सामूहिक हत्याओं के लिए रवांडावासी ज़िम्मेदार हैं?
जबकि रवांडा में हुतू और तुत्सी खुद को विभिन्न सामाजिक वर्गों से संबंधित मानते थे, 19वीं सदी के अंत से 1916 तक रवांडा पर शासन करने वाले जर्मन औपनिवेशिक शासकों ने उन्हें जातीय समूह और नस्लीय आधार पर परिभाषित किया. 19वीं शताब्दी में, कई तुत्सी उच्च वर्ग के सदस्य थे, जिनकी संपत्ति में कीमती मवेशी शामिल थे. दूसरी ओर, हुतू आमतौर पर किसान थे जिनके पास बहुत कम या कोई पशुधन नहीं था. सदियों तक रवांडा के राजा तुत्सी थे. प्रथम विश्व युद्ध में बेल्जियनों ने जर्मनों को रवांडा से बाहर निकाल दिया और 1962 में आजाद होने से पहले तक देश पर नियंत्रण बनाए रखा. इन औपनिवेशिक शासकों ने हुतू और तुत्सी समुदायों के बीच विभाजन को बढ़ा दिया, और अपने हितों को बढ़ाने के लिए कलह का फायदा उठाया. 1950 के दशक के आखिर में, बेल्जियम के लोगों ने राजा और सत्तारूढ़ तुत्सी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे हुतू समुदाय को सत्ता हथियाने में आसानी हुई. उस समय बड़ी संख्या में तुत्सी लोगों पर हमला हुआ. लाखों लोग देश छोड़कर भाग गए.
नरसंहार के 30 साल बाद अब रवांडा में शांति कायम है. राष्ट्रपति कागामे की नीतियों ने हुतु और तुत्सी लोगों की पहचान को लेकर बनी सहमति को समाप्त करने का काम किया है. क्या इसका मतलब यह है कि देश का काला अतीत और समूहों के बीच लंबे समय से पनप रहा अविश्वास अब दूर हो गया है?
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