आज श्रम दिवस है। आज श्रम की परिभाषा बदल गई है। आज परिश्रम तो सब करती हैं, लेकिन शारीरिक श्रम तो करती थीं हमारी पुरखिने। घरघोर कठिन श्रम! चकिया पीसना, यानी जांता चलाना सबके बस की बात नहीं। पहले हर स्त्री का कौशल था। रोपनी सोहनी कटनी कोल्हू के गीत, कितने ही श्रमगीत हैं जिन्हे गाते हुए परिश्रम की पीड़ा हरी हो जाया करती थी। आज आप सभी से यह जंतसार साझा कर रही हूं।
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