श्री न्यान समुच्चय सार ग्रंथ जी तत्वचर्चा:- 1-मै भगवान आत्मा हूं ऐसा भी मानना और रागादि भाव से भी जुडना माया है।अशुद्ध भाव ही माया है।ब्रम्ह सत्ता से हटकर पुदगल पिण्ड रागादि में आचरण ही माया चार है।मैं ज्ञाता दृष्टा भगवान आत्मा हूं ऐसा दृण निश्चल श्रद्धान रखें।
2-सम्यक श्रद्धान होने पर ज्ञान में मंथन चलता है मैं ज्ञान स्वभाव हूं।अनंत चतुष्टय ही वास्तव में मेरे निज प्राण है।दस प्राण कर्म संयोगी है।
3-यह चिंतन मनन मंथन करने में श्रद्धान कहां और कैसा है?
समाधान -सम्यक सुबुद्धि रुप प्रवृत्ति में निर्णय हुआ कि सुख सत्ता चेतन्य बोध ही मेरे प्राण है।वही श्रद्धान है। स्वभाव के श्रद्धान की छटा पड़ने से निर्मलता के कारण बुद्धि सम्यक हो जाती है।बुद्धि स्वभाव के सम्मुख परिणमित होती है। तो बुद्धि से बुद्धि में निज प्राणों का चिंतन मनन मंथन हुआ।
4-यदि ज्ञान से भावानुभूति सहित चर्चा होती कि सुख सत्ता चेतन्य बोध ही मेरे चेतन्य प्राण है।इन्हीं को देखों।
हे आत्मन ये तेरे प्राण है देखो चेतन्य प्राणों को देखकर उसी में बैठो। इतनी उत्कृष्ट बात सम्यक सुबुद्धि से ऊपर ज्ञान में ही आ सकती है।
5-ज्ञान की निर्मलता में तीव्र विरक्ति हो जाएगी।
6-अभी सम्यक सुबुद्धि में मंथन, स्वीकार ,निर्णय किया है।
श्रद्धान के बल पर चेतन्य प्राणों का चिंतन मनन मंथन हुआ।
अब दृण निश्चय करके मोहर, ठप्पा लगा देना श्रद्धान का ही काम है।
7-निज चेतन्य प्राण ही मेरे है संयोगी प्राण मेरे नहीं है यही सत्य है इसमें दृण रहना है।
8-बार-बार इसे मंथन घोलन, करके श्रद्धा दृण करने का पुरुषार्थ करने से चेतन्य प्राणों से ममत्व बढ़ रहा है।
ध्रुव सत्ता की वजनदारी जोर आ रहा है।
9-श्रद्धान बढ़ रहा है अब चेतन्य प्राणों की भावना होगी *हे स्वामी चेतन्य प्राण ही मेरी सत्ता है।*
*चेतन्य प्राण ही मेरे है बार-बार चेतन्य प्राणों का चिंतन मनन मंथन करें।*निज प्राणों का बोध जागृत हो।*
जिन जिन जीवों को निज चेतन्य प्राणों का बोध जागृत हो गया है उनकी अनंत अनंत अनुमोदना है अनुमोदना है।मुझे भी अनंत चतुष्टय स्वभाव का बोध जागृत हो।🙏🙏🙏
श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज जी की शुध्द सम्यक स्वानुभूति से उत्तप्न आर्शीवाद को श्रध्दा आस्था से प्राप्त करने वाली वांचना एवं शुद्धात्म तत्वार्थ साधना भवन / ZOOM परिवार के अग्रज सिद्धहस्त बा.ब्र.धर्मेन्द भैया जी की ओजस्वी वाणी में श्री गुरु महाराज जी की शुद्ध जिन देशना को आत्मसाध करे |
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तत्वचर्चा - श्री तारण तरण श्रावकाचारजी ग्रंथाधिराज
🎙 बा.ब्र.धर्मेन्द्र भैया जी ⬇️
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स्वर कोकिला बहिन कुमुद दीदी के सुमधुर स्वरों में 16 वी शताब्दी के महान अध्यात्मवादी संत श्रीमद जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज के द्वारा सम्यक स्वानुभूति से उत्पन्न फुलनाओ का रसास्वादन, गुरुभक्ति, स्वसमय शुद्धात्मा की श्रध्दा, स्वाभिमान से ओतप्रोत करदेने वाले भजनों को श्रवण करें --*--
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आत्मचिंतन 🕉️🚩
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आध्यात्मिक वैराग्य भजन उदबोधन सहित-
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