वैशाख भारतीय काल गणना के अनुसार वर्ष का दूसरा माह है। इस माह को एक पवित्र माह के रूप में माना जाता है। जिनका संबंध देव अवतारों और धार्मिक परंपराओं से है। ऐसा माना जाता है कि इस माह के शुक्ल पक्ष को अक्षय तृतीया के दिन विष्णु अवतारों नर-नारायण, परशुराम, नृसिंह और ह्ययग्रीव के अवतार हुआ और शुक्ल पक्ष की नवमी को देवी सीता धरती से प्रकट हुई। कुछ मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग की शुरुआत भी वैशाख माह से हुई। इस माह की पवित्रता और दिव्यता के कारण ही कालान्तर में वैशाख माह की तिथियों का सम्बंध लोक परंपराओं में अनेक देव मंदिरों के पट खोलने और महोत्सवों के मनाने के साथ जोड़ दिया। यही कारण है कि हिन्दू धर्म के चार धाम में से एक बद्रीनाथधाम के कपाट वैशाख माह की अक्षय तृतीया को खुलते हैं।[1] इसी वैशाख के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को एक और हिन्दू तीर्थ धाम पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भी निकलती है। वैशाख कृष्ण पक्ष की अमावस्या को देववृक्ष वट की पूजा की जाती है।
पद्म पुराण का कथन है कि वैशाख मास में प्रात: स्नान का महत्त्व अश्वमेध यज्ञ के समान है। इसके अनुसार शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगाजी का पूजन करना चाहिए, क्योंकि इसी तिथि को महर्षि जह्नु ने अपने दक्षिण कर्ण से गंगा जी को बाहर निकाला था।
वैशाख शुक्ल सप्तमी को भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। अतएव सप्तमी से तीन दिन तक उनकी प्रतिमा का पूजन किया जाना चाहिए। यह विशेष रूप से उस समय होना चाहिए, जब पुष्य नक्षत्र हो।
वैशाख शुक्ल अष्टमी को दुर्गा जी, जो अपराजिता भी कहलाती हैं, की प्रतिमा को कपूर तथा जटामासी से सुवासित जल से स्नान कराना चाहिए। इस समय व्रती स्वयं आम के रस से स्नान करें।
वैशाखी पूर्णिमा को ब्रह्मा जी ने श्वेत तथा कृष्ण तिलों का निर्माण किया था। अतएव उस दिन दोनों प्रकार के तिलों से युक्त जल से व्रती स्नान करे, अग्नि में तिलों की आहुति दे, तिल, मधु तथा तिलों से भरा हुआ पात्र दान में दे।
बैशाख मास के उपरान्त बंगाली 'नव वर्ष' का शुभारंभ होता है। ऐसे में नव वर्ष की मंगल कामना को लेकर बंगाली नागरिकों द्वारा भी 'नवरात्र' की तर्ज पर विशेष आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने की प्राचीन परम्परा रही है। इसी कड़ी में 'राधा माधव मंदिर' परिसर में प्रतिवर्ष 'बैशाख पूर्णिमा महोत्सव' का आयोजन किया गया है।
बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। मोहिनी एकादशी व्रत रखने निंदित कार्यो से छुट्कारा मिल जाता है| यह व्रत जगपति जग्दीश्वर भगवान राम और उनकी योगमाया को समर्पित है। जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करते हैं उनका लौकिक और पारलौकिक जीवन संवर जाता है। यह व्रत रखने वाला धरती पर भी सुख पाता हैं और जब आत्मा देह का त्याग करती है तो उसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है।
वृषभ राशि में उच्च के रहने से यह श्रेष्ठ समय माना गया है। चंद्रमा व सूर्य प्रधान ग्रह हैं, जिनकी उच्च स्थिति होने से सभी स्थितियां अनुकूल हो जाती हैं। इससे विवाहादि आदि मांगलिक कार्यों व देव प्रतिष्ठा में सूर्य-चंद्रमा का बलवान होना आवश्यक होता है। इसके कारण वार, नक्षत्र, योग, करण आदि का दोष नहीं लगता।
बैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बरुथिनी एकादशी कहते है
वैशाख मास में अवंतिका वास का विशेष पुण्य कहा गया है। चैत्र पूर्णिमा से वैशाखी पूर्णिमा पर्यन्त कल्पवास,नित्य क्षिप्रा स्नान-दान, तीर्थ के प्रधान देवताओं के दर्शन, स्वाध्याय, मनन-चिंतन,सत्संग, धर्म ग्रंथों का पाठन-श्रवण,संत-तपस्वी, विद्वान और विप्रो की सेवा, संयम,नियम, उपवास आदि के संकल्प के साथ तीर्थवास का महत्त्व है। जो आस्थावान व्यक्ति बैशाख मास में यहाँ वास करता है, वह स्वत: शिवरूप हो जाता है।
बैशाख मास की संक्रांति पर स्नान का विशेष महत्त्व होता है और हर वर्ष इस पर्व में हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु महादेव का आशीर्वाद प्राप्त कर पुण्य कमाते हैं।
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