Badi Teej ki kahani || बड़ी तीज की कहानी || आर्यावर्त की कहानियां
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बड़ी तीज की कहानी
एक सेठ था बहुत धनवान था लेकिन कोढ़ी व अपंग था। तथा उसमें सबसे बड़ा दुर्गुण यह था कि वह रोज वैश्या के घर - जाता था उसकी पत्नी बड़ी सुशील पतिव्रता थी। वह रोज अपने पति को कंधे उठा कर उस वैश्या के घर छोड़ने जाती थी। और जब उसका पति उसे कहता कि इस समय मुझे लेने आ जाना तब वह उसे लेने आ जाती। रोज का यह नियम था। भाद्रपद कृष्ण पक्ष को तीज (काजली तीज ) आई उस दिन उसने सुहाग का व्रत रखा । फिर भी उस दिन भी वह अपने पति को लेकर उस वैश्या के घर गई और रास्ते भर में सोचती रहीं की घर जाकर पीपल की पूजा करूंगी और चाँद देखकर सातु (संतु) पाशुगी।
लेकिन जब उसने अपने पति को वैश्या के घर छोड़ा तब उसने पति ने रोज की तरह कहा भी नहीं कि अभी घर चली जा और शाम को वापस आ जाना। इसलिए पति पालन वह पनि उस वैश्या के घर के बहार खड़ी रही और चिन्ता करने लगी कि हे तीज माता अब में कहे बिना घर नहीं जा सकती और में कैसे पूजा करूंगी कैसे चांद देखूगी और कैसे सतु पाशुगी। उसी समय आकाश में बादल छाए और तिरमझार (जोर से )बारिश होने लगी और पानी का बहाव बहत तेज होने लगा उसी पानी के बहाव में सती तीज माता की कृपा से आंक के पत्ते पर सतु आ गया और छोटा पीपल, नीमड़ी, पुजापा आदी सब पानी में बहते हुए उसके पास आ गए उसने जल्दी उस पुजापों लेकर चन्द्रमा व नीमड़ी की पुजा की।
पूजा करके उसने कहा कि हे तीज माता मेरे पति को ठीक कर दो और अमर सुहाग का वर माँगा ।इधर उस समय जब उस पति को याद आया कि आज मेरी पत्नि के तीज का व्रत है और मैनें उसे घर जाने को भी नहीं कहा ऐसे सोच ही रहा था कि तभी तीज माता की कृपा से। उसका कोढ़ झड़ गया और हाथ पैर भी ठीक हो गए एक दम कंचन काया हो गई। और वह जब नीचे आया और पत्नि के पगे लगने लगा और कहा मुझे माफ कर दो। और में तुम्हारे सतीत्व के कारण एकदम ठीक हो गया। अब घर चलो और दोनों घर जाकर जोड़ा-जोड़ी चन्द्रमा व तीज माता की पूजा की। जिस तरह तीज माता उन पर तुष्टमान हुई उसी तरह सभी पर हो।
कहानी कहने के बाद लप्सी तपसी की कहानी कही जाती है :-
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