नृत्य का जन्म ध्यान में:
मेरी अपनी समझ में तो नृत्य भी पहली बार ध्यान में ही जन्मा है। मेरी समझ में तो जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है उसके कहीं मूल स्रोत ध्यान से संबंधित हैं। मीरा कहीं नाचना सीखने नहीं गई। और लोग सोचते होंगे कि मीरा ने नाच—नाचकर भगवान को पा लिया, तो गलत सोचते हैं। मीरा ने भगवान को पा लिया इसलिए नाच उठी। बात बिलकुल दूसरी है
नाच—नाचकर कोई भगवान को नहीं पाता। लेकिन कोई भगवान को पा ले तो नाच सकता है। और जब समुद्र गिरे बूंद में, और बूंद नाचने न लगे तो क्या करे? और जब किसी भिखारी के द्वार पर अनंत खजाना टूट पडे, और भिखारी न नाचे तो क्या करे?
ध्यान से दमित व्यक्तित्व का विसर्जन:
लेकिन सभ्यता ने मनुष्य को ऐसा जकड़ा है कि वह नाच भी नहीं सकता। मेरी समझ में, दुनिया को अगर वापस धार्मिक बनाना हो तो हमें जीवन की सहजता को वापस लौटाना पडे।
तो यह हो सकता है कि जब ध्यान की ऊर्जा जगे आपके भीतर तो सारे प्राण नाचने लगें, उस वक्त आप शरीर को मत रोक लेना। अन्यथा बात वहीं ठहर जाएगी, रुक जाएगी; और कुछ होनेवाला था, वह नहीं हो पाएगा। लेकिन हम बड़े डरे हुए लोग हैं। हम कहेंगे कि अगर मैं नाचने लगू मेरी पत्नी पास बैठी है, मेरा बेटा पास बैठा है, वे क्या सोचेंगे, कि पिता जी और नाचते हैं! अगर मैं नाचने लगै तो पति पास बैठे हैं, वे क्या सोचेंगे, कि मेरी पत्नी पागल तो नहीं हो गई।
अगर ये भय रहे तो उस भीतर की यात्रा पर गति नहीं हो पाएगी। और शरीर की मुद्राओं, आसनों के साथ—साथ और बहुत कुछ भी प्रकट होता है।....
Osho
Ещё видео!