करमा झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है. यह पर्व झारखंड- बिहार के अलावा ओडिशा, बंगाल, छत्तीसगढ़ और असम में आदिवासी समुदाय द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है.
इस पर्व में बहनें अपने भाइयों की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं और उनके दीर्घायु के लिए पूजन करती हैं. मान्यता है कि इस पर्व को बहनें अपने भाइयों के लिए करती हैं. इसके अलावा यह प्रकृति पूजन का भी प्रतीक जाना जाता है.
क्या होती है करमा पूजा?
करमा पूजा से सात दिन पहले गांव की युवतियां सुबह नदी या तालाब पर जाकर स्नान करती हैं और बांस की नई टोकरी (छोटी डलिया) और पूजा का सामान साथ लेकर जाती हैं. वहां से बालू उठाकर उसमें गेहूं, मकई, जौ, चना, और धान जैसे बीज बोए जाते हैं, जिसे ‘जावा उठाना’ कहा जाता है. इस टोकरी को करमयतीन (करमा पूजा करने वाली युवतियां) करम देवता का प्रतीक मानती हैं और सात दिनों तक इसे घर में सुरक्षित स्थान पर रखती हैं. इस दौरान डलिया की पूजा होती है, जिसमें उसे पानी, धूप आदि दिया जाता है.
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