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श्री हनुमानाष्टक आदित्य गढ़वी के भावयुक्त स्वर में। संकटमोचन हनुमानाष्टक की संरचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी. माना जाता है कि संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति अपनी हर बाधा और पीड़ा से मुक्त हो जाता है और उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं।
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राजा दशरथ के कोई भी पुत्र नहीं था। राजा दशरथ अपने गुरु की आज्ञा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करते हैं। यज्ञ से अग्नि देव उन्हें खीर देते हैं, जिसके सेवन करने कि ९ महीने बाद राजा दशरथ के घर श्री राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघन का जनम होता है। राजा दशरथ उन्हें बड़े प्यार और एक संस्करो से पालते हैं। जब चारों भाई बड़े होने लगते हैं तो राजा दशरथ उन्हें आश्रम में भेज देते हैं जाह वो शिक्षा दीक्षा लेकर पराकर्मी और ज्ञानी बन कर अपने राजमहल वापस पहुँच जाते हैं। श्री राम और लक्ष्मण को ऋषि वसिष्ठ अपने साथ लेने के लिए आते हैं उन्हें राक्षस वन में बहुत प्रताड़ित करते थे एवं उनके यज्ञ व साधना को भंग करते रहते थे। श्री राम लक्ष्मण उनके साथ चल पड़ते हैं। वन में श्री राम सभी राक्षसों को समाप्त कर देते हैं। वन से श्री राम और लक्ष्मण राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर को देखने जाते हैं। जहां श्री राम शिव धनुष को तोड़ सीता के साथ विवाह करते हैं। श्री राम के साथ उनके तीनो भाइयों का भी राजा जनक की पुत्रियों के साथ किया जाता है। श्री राम के विवाह के बाद जब वो अपने घर चले जाते हैं तो रानी कैकयी की दासी मंथरा उन्हें भड़का देती है वह श्री राम को वनवास और भरत को राजा बनाने की बात कैकयी के मन में डाल देती है। रानी कैकयी राजा दशरथ से अपने दो वरदान माँगती है, एक श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत का राज्यभिषेक। राजा जनक अपने वचनो में बांध कर श्री राम को वनवास दे देते हैं और भरत को राजा बनाने की बात भी पूरी कर देते हैं। श्री राम अपने पिता के वचन का पालन करते हुए वनवास को चले जाते हैं। राम के वियोग में राजा दशरथ का निधन हो जाता है। भरत और शत्रुघन अपने ननिहाल से जब वापस आते हैं तो उन्हें इन सब बातों का पता चलता है तो वो अपनी माता कैकयी से रुष्ठ हो जाता है और श्री राम को मनाने के लिए चल पड़ता है। भरत अपने प्रिय भाई को बहुत मानता है लेकिन श्री राम अपने पिता के वचन को निभाते हुए वनवास पूरा करने की बात कह भरत को मना कर देते हैं जिस पर भरत भी अपने भाई राम की तरह वनवासी बन श्री राम की खड़ाऊँ लेकर राज्य वापस आ जाता है। श्री राम लक्ष्मण और माता सीता वन में राक्षसों का संहार करते हुए एक स्थान पर अपना वनवास काट रहे हैं थे की एक दिन वह रावण की बहन शूर्पणखा आ जाती है और ए श्री राम से विवाह की ज़िद्द करती है जिसपर श्री राम मना कर देते हैं। लेकिन जब वह नहीं मानती और माता सीता पर हमला करने लगती है तो लक्ष्मण उसकी नाक काट देता है। शूर्पणखा अपने भाई रावण के पास जाती है रावण शूर्पणखा की दशा देख राम से बदला लेने के लिया सीता का हरण करने की ठान लेता है। सीता हरण करने के लिए वह अपने मामा मारीच की सहायता से साधु का वेश धारण कर माता सीता का हरण कर लेता है। श्री राम जब कुटिया में सीता को नहीं पाते तो वो उनकी तलाश करते हुए वन में भटकते हैं। रास्ते में उन्हें जटायु मिलता है जिसने माता सीता को रावण से बचाने की कोशिश करते हुए रावण से युध किया जिसमें वो घायल हो गया था। श्री राम रावण को ढूँढने के लिए वन में आगे बढ़ते हैं, रास्ते में उन्हें शबरी मिलती है जो अपने प्रिय राम का इंतज़ार वर्षों से करती आ रही थी। शबरी श्री राम को सुग्रीव से मिलने के लिए किष्किन्धा पर्वत की और भेजती हैं। श्री राम सुग्रीव से मिलने के लिए चल पड़ते हैं। जब श्री राम सुग्रीव के पास पहुँचते हैं तो उन्हें पहल हनुमान मिलते हैं। हनुमान जी उन्हें अपने साथ सुग्रीव से मिलने जाते हैं हनुमान जी श्री राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर बैठा कर ले जाते हैं। जब श्री राम सुग्रीव से मिलते हैं तो सुग्रीव उन्हें अपने भाई बाली के बारे में बताता है श्री राम सुग्रीव की सहायता करने के लिए तैयार हो जाते हैं। श्री राम सुग्रीव के भाई बाली को मार देते हैं और सुग्रीव को उसका राज्य वापस दिला देते हैं सुग्रीव माता सीता को खोजने में श्री राम की सहायता करते हैं। सुग्रीव अपनी सेना को चरो दिशाओं में भेज देते हैं। हनुमान जी अंगद नल नील और जामवन्त जब समुद्र के किनारे पहुँचते है तो जटायु का भई संपाती उन्हें रावण की लंका के बारे में बताता है। हनुमान जी लंका की और उड़कर माता सीता को खोजने के लिए निकल पड़ते हैं। लंका में पहुँच कर श्री राम सीता माता को खोज लेते हैं और उन्हें बताते हैं की श्री राम माता सीता को रावण से छुड़ाकर ले जाएँगे। हनुमान जी को मेघनाथ के साथ रावण के दरबार में बंदी बन चले जाते हैं वह हनुमान जी रावण को समझाते हैं की माता सीता को श्री राम के पास भेज दे और खुद भी उनकी शरण में चले जाए। लेकिन रावण नहीं मानता और हनुमान जी की पूँछ में आग लगा देते हैं। हनुमान जी अपनी आग लगी पूँछ से रावण की लंका में आग लगा कर श्री राम के पास चले जाते हैं। श्री राम सीता के बारे में हनुमान से सुन सुग्रीव की सेना लेकर रावण की लंका की ओर चल पड़ते हैं। रावण का भाई विभीषण उसे समझने की कोशिश करता है की श्री राम से युध सही नहीं है, लेकिन रावण नहीं मानता और क्रोध में आकर विभीषण को लंका से निकल देता हैं।
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