कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा।
कया शचिष्ठया वृता॥ ६८२
सदा वर्धमान सखा ऊती(रक्षा, भक्ति) हमारे लिए किस प्रकार चित्र बने। वह किस प्रकार शचिष्ठ बल से आवृत हो।
कस्त्वा सत्यो मदानां मंहिष्ठो मत्सदन्धसः।
दृढा चिदारुजे वसु॥ ६८३
अभी षु णः सखीनामविता जरितॄणाम्।
शतं भवास्यूतये॥ ६८४
हे इन्द्र, तू हम स्तोत्रकर्ता सखाओं का रक्षक बन। रक्षा के लिए शत बन।
द्र. वामदेवोपरि टिप्पणी -- [ Ссылка ]
द्र. वामनोपरि टिप्पणी - [ Ссылка ]
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