सत्यार्थ प्रकाश के आठवें समुल्लास में जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय की व्याख्या की गई है |
महान समाज सुधारक "महर्षि दयानन्द सरस्वती" द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश का प्रयोजन सत्य को सत्य और मिथ्या को मिथ्या ही प्रतिपादन करना है।
सत्यार्थ प्रकाश 14 समुल्लास अर्थात् चौदह विभागों में रचा गया है :
1- प्रथम समुल्लास में ईश्वर के ओंकार आदि नामों की व्याख्या।
2- द्वितीय समुल्लास में सन्तानों की शिक्षा।
3- तृतीय समुल्लास में ब्रह्मचर्य, पठन पाठन व्यवस्था, सत्यासत्य ग्रन्थों के नाम और पढ़ने पढ़ाने की रीति।
4- चतुर्थ समुल्लास में विवाह और गृहाश्रम का व्यवहार।
5- पञ्चम समुल्लास में वानप्रस्थ और संन्यासाश्रम का विधि।
6- छठे समुल्लास में राजधर्म।
7- सप्तम समुल्लास में वेदेश्वर-विषय।
8- अष्टम समुल्लास में जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय।
9- नवम समुल्लास में विद्या, अविद्या, बन्ध और मोक्ष की व्याख्या।
10- दशवें समुल्लास में आचार, अनाचार और भक्ष्याभक्ष्य विषय।
11- एकादश समुल्लास में आर्य्यावर्त्तीय मत मतान्तर का खण्डन मण्डन विषय।
12- द्वादश समुल्लास में चारवाक, बौद्ध और जैनमत का विषय।
13- त्रयोदश समुल्लास में ईसाई मत का विषय।
14- चौदहवें समुल्लास में मुसलमानों के मत का विषय।
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