किराड़ू को राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है, जबकि जगत लघु खजुराहो के रूप में जाना जाता है। दक्षिण भारतीय शैली में बना किराड़ू का मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। बाड़मेर से 43 किलोमीटर दूर हाथमा गांव में ये मंदिर है। खंडहरनुमा जर्जर से दिखते पांच मंदिरों की श्रृंखला की कलात्मक बनावट देखने वालों को मोहित कर लेती हैं। कहा जाता है कि 1161 ई. इस स्थान का नाम 'किराट कूप' था। करीब 1000 ई. में यहां पर पांच मंदिरों का निर्माण कराया गया। लेकिन इन मंदिरों का निर्माण किसने कराया, इसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन मंदिरों की बनावट शैली देखकर लोग अनुमान लगाते है कि इनका निर्माण दक्षिण के गुर्जर-प्रतिहार वंश, संगम वंश या फिर गुप्त वंश ने किया होगा। मंदिरों की इस शृंखला में केवल विष्णु मंदिर और शिव मंदिर (सोमेश्वर मंदिर) थोड़े ठीक हालात में है। बाकि मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। श्रृंखला में सबसे बड़ा मंदिर शिव को समर्पित नजर आता है। खम्भों के सहारे निर्मित यह मंदिर भीतर से दक्षिण के मीनाक्षी मंदिर की याद दिलाता है, तो इसका बाहरी आवरण खजुराहो का रंग लिए हैं। काले व नीले पत्थर पर हाथी-घोड़े व अन्य आकृतियों की नक्काशी मंदिर की कलात्मक भव्यता को दर्शाती है। श्रृंखला का दूसरा मंदिर पहले से आकार में छोटा है। लेकिन यहां शिव की नहीं विष्णु की प्रधानता है। जो स्थापत्य और कलात्मक दृष्टि से काफी समृद्ध है। शेष मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। लेकिन बिखरा स्थापत्य अपनी मौजूदगी का एहसास कराता है। किराड़ू के इन मंदिरों को देखने के बाद ये सवाल उठता है कि आखिर इन्हें खजुराहो की तरह लोकप्रियता क्यों नहीं मिली। साथ ही इन्हें सहेजने के प्रयास क्यों नहीं किए गए।
Special Thanks for
Kiradu's History explained by Ajaypal Singh Rathore
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